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बसवा जयंती एक हिंदू त्योहार है जो मुख्य रूप से कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र में मनाया जाता है. यह त्योहार भगवान बसवन्ना की जयंती का प्रतीक है. भगवान बासवन्ना लिंगायतवाद के संस्थापक थे. उनके जन्मदिन को एक नए युग की शुरुआत के रूप में माना जाता है जिसे बसवन्ना युग या बसवेश्वर युग कहा जाता है. बसवा जयंती (Basava Jayanti 2023) आमतौर पर वैशाख महीने के तीसरे दिन पड़ती है लेकिन यह अलग-अलग होती है.
इस साल बसव जयंती 23 अप्रैल को है. बसवन्ना एक महान कवि, समाज सुधारक और दार्शनिक थे. उन्होंने लिंग और सामाजिक पूर्वाग्रह को खारिज कर दिया और इष्ट लिंग पेश किया. बसवा जयंती पर कर्नाटक में छुट्टी होती है. इस दिन लोग भगवान बसवेश्वर के मंदिरों में पूजा अर्चना करने जाते हैं. यह विशेष रूप से किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है.
बसव जयंती पर लोग जाते हैं कुडलसंगम
लिंगायत समितियां विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करती हैं और यह महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में आम बात है. लोग बसव जयंती पर मिठाइयों और शुभकामनाओं का आदान-प्रदान करते हैं. बासवन्ना की शिक्षाओं को याद करने के लिए व्याख्यान आयोजित किए जाते हैं. बहुत से लोग कुडलसंगम जाना पसंद करते हैं, जो 6-7 दिनों के लिए बसव जयंती मनाता है और कई सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कार्यक्रम आयोजित करता है.
बासवन्ना का जीवन परिचय
बासवन्ना का जन्म 12वीं शताब्दी में बगवाड़ी में हुआ था, जो हुनुगुंड से 20 किमी दूर है. कुछ इतिहासकारों का कहना है कि उनका जन्म इंग्लेश्वर में हुआ था. उनके पिता का नाम मदरस और माता का नाम मदालम्बे था. उन्होंने अपना बचपन कुदालसंगम में बिताया और गंगाम्बिके से शादी की. उनकी पत्नी गंगाम्बिके बिज्जल के प्रधानमंत्री की बेटी थीं. बिज्जल कलचुरी राजा था. बासवन्ना ने लेखाकार के रूप में काम करना शुरू किया.
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Apurva Srivastav
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