धर्म-अध्यात्म

कब है अनंत चतुर्दशी व्रत, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा

Shiddhant Shriwas
14 Sep 2021 3:25 AM GMT
कब है अनंत चतुर्दशी व्रत, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा
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भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी व्रत मनाया जाता है। इस बार यह 19 सितंबर को है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी व्रत मनाया जाता है। इस बार यह 19 सितंबर को है। अनंत यानी जिसके न आदि का पता है और न ही अंत का। अर्थात वे स्वयं श्री हरि ही हैं। इस व्रत में स्नानादि करने के बाद अक्षत, दूर्वा, शुद्ध रेशम या कपास के सूत से बने और हल्दी से रंगे हुए चौदह गांठ के अनंत को सामने रखकर हवन किया जाता है। फिर अनंत देव का ध्यान करके इस शुद्ध अनंत, जिसकी पूजा की गई होती है, को पुरुष दाहिनी और स्त्री बायीं भुजा/हाथ में बांधते हैं। इस व्रत में एक समय मुख्य रूप से सिमई युक्त, बिना नमक का भोजन किया जाता है। निराहार रहें, तो श्रेष्ठ है। इसी दिन प्रथम पूज्य गणेश जी की मूर्तियों का विसर्जन भी गणेश भक्तों द्वारा किया जाता है।

पुराणों में अनंत चतुर्दशी की कथा के युधिष्ठिर से सम्बंधित होने का उल्लेख मिलता है। पांडवों के राज्यहीन हो जाने पर श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी का व्रत करने का सुझाव दिया। इससे पांडवों को हर हाल में राज्य वापस मिलेगा, इसका भी भरोसा दिया। युधिष्ठिर ने जब पूछा- यह अनंत कौन हैं? तब श्रीकृष्ण ने कहा कि श्रीहरि के ही स्वरूप हैं। इस व्रत को विधि विधान से करने से जीवन में आ रहे समस्त संकट समाप्त होंगे।
चतुर्दशी तिथि और शुभ मुहूर्त-
अनंत चतुर्दशी तिथि आरंभ : 19 सितंबर 2021, रविवार 6:07 Am से
चतुर्थी तिथि की समाप्ति : 20 सितंबर 2021, सोमवार 5:30 Am तक
व्रत की कथा है- सुमंत नामक एक वशिष्ठ गोत्री ब्राह्मण थे। उनका विवाह महर्षि भृगु की कन्या दीक्षा से हुआ। इनकी पुत्री का नाम सुशीला था। दीक्षा के असमय निधन के बाद सुमंत ने कर्कशा से विवाह किया। पुत्री का विवाह कौण्डिन्य मुनि से हुआ। किंतु कर्कशा के क्रोध के चलते सुशीला एकदम साधनहीन हो गई। वह अपने पति के साथ जब एक नदी पर पंहुची, तो उसने कुछ महिलाओं को व्रत करते देखा। महिलाओं ने अनंत चतुर्दशी व्रत की महिमा बताते हुए कहा कि अनंत सूत्र बांधते समय यह मंत्र पढ़ना चाहिए-

'अनंत संसार महासमुद्रे मग्नं समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्यनंतसूत्राय नमो नमस्ते॥'

अर्थात- 'हे वासुदेव! अनंत संसाररूपी महासमुद्र में मैं डूब रही/रहा हूं, आप मेरा उद्धार करें, साथ ही अपने अनंतस्वरूप में मुझे भी आप विनियुक्त कर लें। हे अनंतस्वरूप! आपको
मेरा बार-बार प्रणाम है।' सुशीला ने ऐसा ही किया, किंतु कौण्डिन्य मुनि ने गुस्से में एक दिन अनंत का डोरा तोड़ दिया और फिर से कष्टों से घिर गए। किंतु क्षमाप्रार्थना करने पर
अनंत देव की उन पर फिर से कृपा हुई।

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