धर्म-अध्यात्म

कब है अक्षय तृतीया, जानें क्यों मनाई जाती है और तिथि, शुभ मुहूर्त

Rani Sahu
19 April 2022 5:47 PM GMT
कब है अक्षय तृतीया, जानें क्यों मनाई जाती है और तिथि, शुभ मुहूर्त
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अक्षय तृतीया का दिन हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ दिन माना गया है

अक्षय तृतीया का दिन हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ दिन माना गया है. ये पर्व वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन मनाया जाता है. इस दिन शुभ और मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं. इसे आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है. इस बार अक्षय तृतीया 3 मई , 2022 को पड़ रही है. इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है. इतना ही नहीं, इस दिन सोना खरीदना शुभ माना जाता है. आइए जानते हैं क्यों मनाते हैं अक्षय तृतीया, इसकी तिथि और शुभ मुहूर्त के बारे में.

अक्षय तृतीया शुभ मुहूर्त
अक्षय तृतीया तिथि आरंभ- 3 मई सुबह 5 बजकर 19 मिनट पर
अक्षय तृतीया तिथि समापन- 4 मई सुबह 7 बजकर 33 मिनट तक.
रोहिणी नक्षत्र- 3 मई सुबह 12 बजकर 34 मिनट से शुरू होकर 4 मई सुबह 3 बजकर 18 मिनट तक होगा.
अक्षय तृतीया महत्व
अक्षय तृतीया का दिन शुभ और मांगलिक कार्यों के लिए शुभ होता है. इस दिन अबूझ मुहूर्त होता है. इस दिन विवाह के साथ-साथ वस्त्र, सोने-चांदी के आभूषण, वाहन, प्रॉपर्टी, आदि की खरीददारी भी शुभ मानी गई है. इस दिन दान-पुण्य का भी विशेष महत्व बताया गया है. अगर आप ऐसा करते हैं तो धन-धान्य में खूब बढ़ोतरी होती है.
इसलिए मनाई जाती है अक्षय तृतीया
अक्षय तृतीया मनाने को लेकर कई मान्यताएं हैं. आइए जानें.
1. ऐसा माना जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का जन्म हुआ था. इस दिन अक्षय तृतीया के साथ परशुराम जंयती भी मनाई जाती है.
2. वहीं, एक मान्यता यह भी है कि इस दिन भागीरथ की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा धरती पर अवतरित हुई थीं.
3. ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन मां अन्नपूर्णा का जन्म हुआ था. इसलिए इस दिन रसोई घर और अनाज की पूजा करनी चाहिए.
4. अक्षय तृतीया के दिन भगवान शंकर मां लक्ष्मी की पूजा करने के लिए कुबेर जी को कहा था. इसलिए आज के दिन मां लक्ष्मी की पूजा का विधान है.
5. माना जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन नर-नारायण ने भी अवतार लिया था.
6. महाभारत के अनुसार इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने वनवास के दौरान पांडवों को अक्षय पत्र भेंट किए थे. अक्षय पात्र कभी भी खाली नहीं रहता. ये हमेशा अन्न से भरे रहते थे. जिससे पांडवों को अन्न की प्राप्ति होती रहती थी.
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