धर्म-अध्यात्म

कब और कैसे चढ़ाएं सूर्य देव को अर्घ्य

Tara Tandi
7 Aug 2023 10:07 AM GMT
कब और कैसे चढ़ाएं सूर्य देव को अर्घ्य
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सनातन धर्म में सूर्य को साक्षात् देवता माना गया हैं इनका प्रकाश जीवन का प्रदान करता हैं। इस धर्म को मानने वाले अधिकतर लोग रोजाना सूर्यदेव की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्यदेव को सप्ताह में रविवार का दिन समर्पित किया गया हैं लेकिन इन्हें अर्घ्य यानी जल रोजाना देना शुभ माना जाता हैं। मान्यता हैं कि सूर्यदेव की पूजा और उन्हें अर्घ्य अर्पित करने से जीवन में सुख समृद्धि आती हैं और सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिल जाती हैं, ऐसे में अधिकतर लोग रोजाना सुबह सूर्यदेव को जल अर्पित कर उनकी विधि विधान से पूजा करते हैं लेकिन आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा सूर्यदेव को अर्घ्य प्रदान करने की विधि, नियम और मंत्र के बारे में संपूर्ण जानकारी से अवगत करा रहे हैं, तो आइए जानते हैं।
सूर्य देव को अर्घ्य देने की विधि और नियम—
शास्त्र अनुसार भगवान श्री सूर्य देव को सुबह के वक्त तांबे के कलश से तीन बार अर्घ्य अर्पित करना चाहिए। सबसे पहले एक बार अर्घ्य दें और परिक्रमा करें। इसके बाद दूसरी बार अर्घ्य देकर परिक्रमा करें और तीसरी बार अर्घ्य देकर फिर से परिक्रमा करें और धरती को स्पर्श करें। माना जाता है कि इस तरह से सूर्यदेव को अर्घ्य देकर परिक्रमा करने से भगवान की कृपा जीवन में बनी रहती हैं। इसके अलावा हमेशा ही उगते हुए सूर्य को ही अर्घ्य प्रदान करना चाहिए। ऐसे में अगर आप सूर्य देव की कृपा चाहते हैं तो सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद भगवान सूर्य को जल चढ़ाएं।
माना जाता है कि उगते हुए सूर्यदेव को अगर जल अर्पित किया जाए तो बेहद फलदायी होता हैं। भगवान सूर्य को जल अर्पित करने से पहले जल में रोली, लाल पुष्प और अक्षत मिलाएं इसके बाद अर्घ्य दें। अर्घ्य देते वक्त हमेशा ही अपना मुख पूर्व दिशा की ओर रखें और इस बात का ध्यान रखें कि जल के छीटें आपके पैरों पर न पड़ें। अगर आप इस विधि से भगवान सूर्यदेव को जल अर्पित करते हैं तो आपको लाभ जरूर मिलेगा। इसी के साथ ही सूर्य देव को जल चढ़ाते वक्त इन मंत्रों का जाप जरूर करें।
सूर्य देव को अर्घ्य देते वक्त करें इन मंत्रों का जाप—
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा
ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर
ऊं ब्रह्म स्वरुपिणे सूर्य नारायणे नमः
ॐ आरोग्य प्रदायकाय सूर्याय नम:
ॐ घ्राणि सूर्याय नम:
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