धर्म-अध्यात्म

कब और कैसे मनाया जाता है माघ बिहू का पर्व, जाने एक क्लिक पर

Subhi
14 Jan 2022 2:46 AM GMT
कब और कैसे मनाया जाता है माघ बिहू का पर्व, जाने एक क्लिक पर
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सूर्यदेव वर्षभर सभी राशियों में भ्रमण करते हैं। सूर्यदेव का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना संक्रांति कहलाता है। जब सूर्यदेव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं

सूर्यदेव वर्षभर सभी राशियों में भ्रमण करते हैं। सूर्यदेव का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना संक्रांति कहलाता है। जब सूर्यदेव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो मकर संक्रांति मनाई जाती है। सनातन धर्म में मकर संक्रांति तिथि का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन राजा सगर के पुत्रों को मोक्ष दिलाने हेतु मां गंगा धरती पर प्रकट हुई थी। अत: इस दिन गंगा स्नान का विधान है। इस दिन गंगा स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप कट जाते हैं। देशभर में मकर संक्रांति धूमधाम से मनाई जाती है। वहीं, देश के अन्य हिस्सों में मकर संक्रांति के दिन कई अन्य पर्व मनाए जाते हैं। असम में मकर संक्रांति के मौके पर माघ बिहू मनाया जाता है। आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-

माघ बिहू

जानकारों की मानें तो असम में तीन बिहू मनाई जाती है। माघ महीने में माघ बिहू, वैशाख में बोहाग बिहू और कार्तिक में काटी बिहू मनाया जाता है। माघ बिहू फसल पकने और तैयार होने की ख़ुशी में मनाया जाता है। माघ बिहू को उत्स्व माना जाता है। बच्चे-बूढ़े सभी इस उत्स्व में शामिल होते हैं। यह बिल्कुल लोहड़ी की तरह होता है। इसमें भी अग्नि जलाकर उसमें आहुति दी जाती है। लोग आग के समीप एकत्र होकर ख़ुशी का इजहार गीत गाकर और नाच करते हैं।

कैसे मनाते हैं बिहू

माघ बिहू की शुरुआत लोहड़ी के दिन होती है। इसे उरुका कहते हैं। इस दिन सभी लोग पवित्र नदियों और सरोवरों में आस्था की डुबकी लगाते हैं। इसके बाद नदी या सरोवर के समीप सार्वजनिक स्थल पर पुआल की छावनी बनाते हैं। इस घर को भेलाघर कहा जाता है। इस स्थल पर उरुका की रात्रि को भोज का आयोजन किया जाता है। इसमें सात्विक भोजन बनाया जाता है। भोजन सर्वप्रथम ईश्वर को भोग लगाया जाता है। इसके बाद सभी लोग प्रसाद ग्रहण करते हैं।

भेलाघर यानी पुआल की छावनी के समीप बांस और पुआल की मदद से झोपड़ी बनाए जाते हैं। इस गुंबद या झोपड़ी को मेजी कहा जाता है। माघ बिहू यानी मकर संक्रांति की तिथि को लोग स्नान-ध्यान कर मेजी में आग लगाते हैं। सभी लोग मेजी के चारों ओर एकत्र होकर अग्नि में अपनी सुविधा और इच्छा अनुसार खाद्य सामग्री अर्पित करते हैं। इस मौके पर लोग नाचते और गाते हैं। अंत में ईश्वर से शुभ और मंगल की कामना करते हैं। अगले दिन मेजी के राख को अपनी खेतों में छिड़कते हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे खेतों की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है।


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