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इस नवरात्रि क्या है घट स्थापना का शुभ मुहूर्त,जानें मां को प्रसन्न करने के मंत्र और विधि
घटस्थापना का महत्व
नवरात्रि में घटस्थापना व कलश स्थापना का विशेष महत्व होता है. जो इस पर्व के पहले दिन ही होती है. कलश पर मौली बांधते हुए इस पर आम के पत्ते रखे जाते हैं और फिर 9 दिनों तक मा के साथ साथ इस कलश की भी पूजा होती है. जब भी कलश स्थापना करें तो भगवान गणेश और मां दुर्गा के पहले स्वरूप शैलपुत्री की उपासना ज़रुर करें.
नवरात्रि 2020 में घटस्थापना का शुभ मुहूर्त
इस बार नवरात्रि पर्व का शुभारंभ 17 से हो रहा है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और फिर घटस्थापना की तैयारी करे.
शुभ मुहूर्त है - सुबह 6ः10 मिनट से 10ः11 मिनट तक
यानि इस बार आपके पास कलश स्थापना के लिए काफी समय है. वहीं अगर आप अभिजीत मुहूर्त में कलश स्थापना करना चाहते हैं तो शनिवार को सुबह 11ः 43 मिनट से लेकर 12ः28 मिनट तक ये शुभ मुहूर्त रहेगा. इस मुहूर्त में कलश स्थापना का विशेष महत्व माना गया है.
घटस्थापना विधि
नवरात्रि के मौके पर कलश स्थापना करने से पहले कुछ सामग्री की आवश्यक्ता पड़ती है। जैसे
मिट्टी का कलश
जौ
मिट्टी
आम के पत्ते
गंगाजल
जटा नारियल
अक्षत
-माता की लाल चुनरी
फूल और श्रृंगार का सामान
अब आपको बताते हैं घटस्थापना की विधि
इस दिन सुबह सवेरे उठकर स्नान करें और फिर सभी सामान उचित जगह(जहां मां की चौकी लगानी हो) रख दें. तय शुभ मुहूर्त में सबसे पहले घटस्थापना वाले स्थान को गंगा जल छिड़के और उसे पवित्र करें. जमीन पर साफ मिट्टी बिछा दें, और वहां जौ बोए, इन जौ के ऊपर मिट्टी की एक परत और बिछाए और उस मिट्टी के ऊपर कलश की स्थापना कर दें. याद रहे कि ये कलश साफ जल से भरा होना चाहिए जिसमें गंगाजल भी मिला दें. कलश को कलावे से बांधें और कलश में आम के 8 पत्ते लगाएंं. इसके बाद देवी मां का ध्यान करें. इस दौरान इन मंत्रों का जाप करना चाहिए
ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्राह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे, अमुकनामसम्वत्सरे
आश्विनशुक्लप्रतिपदे अमुकवासरे प्रारभमाणे नवरात्रपर्वणि एतासु नवतिथिषु
अखिलपापक्षयपूर्वक-श्रुति-स्मृत्युक्त-पुण्यसमवेत-सर्वसुखोपलब्धये संयमादिनियमान् दृढ़ं पालयन् अमुकगोत्रः
अमुकनामाहं भगवत्याः दुर्गायाः प्रसादाय व्रतं विधास्ये।
पहले दिन शैलपुत्री माता की पूजा
आप जानते ही होंगे कि नवरात्रि के नौ दिनो में देवी दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा की जाती है. और शुरुआत होती है माता पार्वती के पहले रूप शैलपुत्री माता की उपासना से। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ही इस देवी का नाम शैलपुत्री पड़ा। पहले दिन इन्हीं की पूजा अर्चना की जाती है.