- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- धर्म-अध्यात्म
- /
- सावन में क्या है...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ को समर्पित सोमवार ही नहीं बल्कि मंगलवार का भी बहुत महत्व होता है. सोमवार दिन भगवान शिव के लिए व्रत एवं पूजा करने से जहां महादेव की कृपा बरसती हैं, वहीं मंगलवार के दिन माता मंगला गौरी की पूजा करने से अविवाहित कन्याओं को मनचाहा वर और विवाहित महिलाओं को सदा सुहागिन रहने का आशीर्वाद प्राप्त होता है. यही कारण है कि श्रावण मास के सोमवार के बाद आने वाला मंगलवार भी महत्वपूर्ण हो जाता है. सावन में पड़ने वाले मंगलवार को महिलाएं अखंड सौभाग्य का वरदान पाने के लिए मां मंगला गौरी का पूरे विधि-विधान के साथ पूजन करती हैं.
काशी में है मां मंगला गौरी का भव्य मंदिर
मां मंगला गौरी का पावन धाम भी उत्तर प्रदेश में भगवान भोले की नगरी में स्थित है. माता मंगला गौरी निःसंतान दम्पत्तियों की झोली खुशियों से भरने वाली और अविवाहित कन्याओं को सुयोग्य वर वर प्रदान करने वाली हैं. यहां पर आने वाले हर किसी की मनोकामना जरूर पूरी होती है. यही कारण है कि प्रत्येक मंगलवार को इस मंदिर में काफी संख्या में श्रद्धालु मां के दर्शन-पूजन के लिए पहुंचते हैं.
मां मंंगला गौरी की कथा
मान्यता है कि एक बार सूर्यदेव वाराणसी के पंचगंगा घाट (पंचनंदा तीर्थ) पर शिवलिंग स्थापित करके घोर तपस्या करने लगे. उनके तप से उनकी किरणें आग के समान गर्म होने लगीं. चारो ओर हाहाकार मच गया. पशी-पक्षु, मानव सभी व्याकुल होने लगे. तब तपस्या में लीन सूर्यदेव के सामने भगवान शिव और माता पार्वती प्रकट हुए और उन्हें वरदान स्वरूप दैव शक्तियां प्रदान की. साथ ही कहा कि इस पवित्र स्थान को भविष्य में यहां स्थापित देवी मंगला गौरी के नाम से जाना जायेगा. जिनके दर्शन-पूजन करने पर उनके सभी रोग-शोक जाते रहेंगे और उन्हें सुख-समृद्धि का वरदान मिलेगा. यदि कोई अविवाहित कन्या मां मंगला गौरी का दर्शन करेगी तो उसे सर्वगुण सम्पन्न वर और निःसंतान दम्पत्ति को संतान सुख प्राप्त होगा.
इस पूजा से पूरी होती है सौभाग्य की कामना
कोरोना के चलते यदि आप वाराणसी स्थित मां मंगला देवी के दर्शन-पूजन के लिए न पहुंच सकें तो आप घर में रहते हुए उनका व्रत एवं पूजन कर उनकी कृपा पा सकते हैं. इस व्रत को श्रावण मास के मंगलवार से प्रारंभ कर इस व्रत को 16 मंगलवार रखने का विधान है. मां मंगला गौरी की पूजा में 16 की संख्या का विशेष ख्याल रखा जाता है. इसलिए उन्हें चढ़ाई जाने वाली पूजा की सभी वस्तुएं 16 की संख्या में चढ़ाई जाती हैं.
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)