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होलिका महर्षि कश्यप और दिति की पुत्री थी. इनका जन्म जनपद-कासगंज के सोरों शूकक्षेत्र नाम की जगह में हुआ था
हिंदू धर्म में हर पर्व के पीछे कोई ना कोई पौराणिक कथा प्रचलित है. सभी को लेकर एक कथा ग्रंथों में है जो साल दर साल लोग फॉलो करते चले आ रहे हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मासकी पूर्णिमा को में होली का त्योहार मनाया जाता है. जिसमें लोग हंसी-खुशी परिवार के साथ इस त्योहार को मनाते हैं. लेकिन उसके पहले होलिका दहन किया जाता है और इस दिन को लेकर एक कथा प्रचलित है. होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व में मनाई जाती है लेकिन इसके पीछे की पौराणिक कथा क्या है, चलिए आपको बताते हैं.
होलिका कौन थी?
होलिका महर्षि कश्यप और दिति की पुत्री थी. इनका जन्म जनपद-कासगंज के सोरों शूकक्षेत्र नाम की जगह में हुआ था. होलिका हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप नाम के योद्धा की बहन थी. इसके साथ ही हिरण्यकशिपु के पुत्रों प्रह्लाद, अनुह्लाद, सह्लाद और ह्लाद की बुआ भी थीं. होलिका को अपने भाईयों पर घमंड था कि उन्हें कोई हरा नहीं सकता. इसके साथ ही होलिका को वरदान भी प्राप्त था कि वो जलेगी नहीं लेकिन भगवान ने होलिका के घमंड को होलिका कुंड में जलाकर भस्म कर दिया.
होलिका को क्यों जलाया जाता है
विष्णुपुराण में एक था वर्णित है जिसके अनुसार, सतयुग के अंत में महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी दिति के दो पुत्र और एक पुत्री हुए थे. हिरण्यकशिपु, होलिका और हिरण्याक्ष. दिति के बड़े बेटे हिरण्यकशिपु ने कठिन तपस्या से ब्रह्मा जी से वरदान पाया था कि उसे ना पशु द्वारा मारा जाएगा, ना दिन में ना रात में, ना घर के अंदर और ना घर के बाहर मारा जाएगा. इसके बाद उसे प्राणों का डर नहीं रहता था और वो अपने राज्य की प्रजा से कहता था कि वो उनका भगवान है. सभी लोग डरकर उसकी पूजा करते थे लेकिन हिरण्यकशिपु के बेटे प्रह्लाद के मन में विष्णु जी की भक्ति आती है और वो हर समय हरि हरि का भजन करता रहता था. बेट को मरवाने के लिए हिरण्यकशिपु ने हर जतन किए लेकिन भगवान विष्णु प्रह्लाद को बचा लेते थे.
मगर जब उसे कोई रास्ता नहीं सूझा तब उसने अपनी बहन होलिका को बुलाया. हिरण्यकशिपु ने होलिका से कहा कि वो प्रह्लाद को गोद में लेकर प्रज्जवलित अग्नि में बैठ जाए. ऐसा इसलिए क्योंकि होलिका को वरदान था कि वो अग्नि में जल नहीं सकती है. होलिका ने ऐसा ही किया लेकिन श्रीहरि के भक्त प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ और होलिका जलकर राख हो गई.इसलिए कहते हैं कि बुराई जितनी शक्तिशाली हो हाल ही जाती है जबकि सच्चाई की हमेशा जीत होती है.
Who was Holika
होलिका दहन क्यों होता है. (फोटो साभार: Unsplash)
इसके अगले दिन बुराई पर अच्छाई की जीत की खुशी में रंगों का त्योहार मनाया जाता है. ये परंपरा सदियों से चली आ रही है और लोग इस दिन को बहुत ही खुशियों के साथ और धूमधाम से मनाते हैं. लोग रिश्तेदारों, दोस्तों के यहां जाकर मिठाई खाते हैं और एक-दूसरे को रंग लगाते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस दिन हर किसी को अपने गिले-शिकवे भूलकर गले लगना चाहिए. भाईतारे को बढ़ावा और नफरत को खत्म करना चाहिए.
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Apurva Srivastav
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