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हिंदू धर्म में सर्वप्रथम पूजा भगवान श्री गणेश जी की करते हैं. उन्हें लंबोदर, गजानन और ऋद्धि-सिद्धि के दाता नाम से भी पुकारते हैं. गणपति पूजा हर महीने कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष दोनों पक्ष में आता है और ये व्रत दो बार रखते हैं. वैशाख मास की चतुर्थी पर रखे जाने वाले व्रत को संकष्टी चतुर्थी व्रत कहते हैं. सनातन धर्म के अनुसार, विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत को करने वाले के जीवन से बड़ी से बड़ी बाधाएं दूर हो जाती हैं. चलिए आपको इस पूजा की विधि, शुभ मुहूर्त और महत्वता बताते हैं. जिसे करने वालों के लिए सही तारीख और समय जानना जरूरी है.
कब है विकट संकष्टी चतुर्थी? (Vikat Sankashti Chaturthi 2023 Date)
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल श्री गणेश जी की कृपा बरसाने वाले विकट संकष्टी चतुर्थी का दिन 9 अप्रैल को पड़ा है. इस दिन रविवार को पड़ा है. पंचांग के अनुसार, वैशाख मास की जिस चतुर्थी पर यह व्रत होता है वो 9 अप्रैल की सुबह 9.35 से शुरू होगा और 10 अप्रैल की सुबह 8.37 पर खत्म होगा. वहीं विकट संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्रोदय रात के 10.02 बजे होगा. इसी शुभ मुहूर्त पर आपको विकट संकष्टी की पूजा करनी चाहिए, इससे आपको काफी लाभ होगा.
विकट संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि (Vikat Sankashti Chaturthi Puja Vidhi)
भगवान गणेश से मनचाहा आशीर्वाद पाने के लिए आपको विकट संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधिवत करनी चाहिए. इसके लिए पूजा वाले दिन सुबह उठें, स्नान करें और साफ कपड़े धारण करें. इसके बाद एक चौकी पर लाल रंग के कपड़े को बिछाएं और भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वीर रखकर उनका वंदन करें. गंगाजल से उनका अभिषेक करें, फल, फूल, चंदन, रोली, अक्षत, दीप, धूप और दुर्वा गणेश जी की प्रतिमा पर अर्पित करें. इसके बाद गणपति मंत्र, अथर्वशीर्ष का पाठ करें और फिर उनकी आरती करें. गणपति भगवान आपकी सभी इच्छाओं को पूरा करेंगे.
विकट संकष्टी चतुर्थी का महत्व (Vikat Sankashti Chaturthi Importance)
ऐसी मान्यता है कि विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत करने से भगवान गणेश आपके संतान पर आने वाले सारे संकट दूर करते हैं. इसके साथ ही वैवाहिक जीवन में तनाव भी खत्म होता है. इसके अलावा कमजोर बुद्धि वालों के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है, घर कारोबार में आ रही समस्याएं दूर होती हैं. मांगलिक कार्य भी अच्छे से संपन्न होते हैं. इसलिए भगवान गणेश की पूजा खासकर चतुर्थी वाली तिथि पर पड़ने वाली पूजा को जरूर करना चाहिए.
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Apurva Srivastav
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