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धर्म-अध्यात्म
भगवान शिव पर बेलपत्र और जल चढ़ाने का क्या हैं महत्व, जानें इसके नियम
Triveni
22 Feb 2021 5:43 AM GMT
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सोमवार का दिन महादेव को समर्पित होता है. महादेव को भोलेनाथ भी कहा जाता है,
जनता से रिश्ता वेबडेसक | सोमवार का दिन महादेव को समर्पित होता है. महादेव को भोलेनाथ भी कहा जाता है, क्योंकि वे इतने भोले हैं कि भक्त के श्रद्धाभाव से चढ़ाए हुए जल से ही प्रसन्न हो जाते हैं. इसके अलावा महादेव की पूजा में बेलपत्र का भी विशेष महत्व होता है. माना जाता है कि यदि महादेव के भक्त सिर्फ बेलपत्र या जल ही नियमित तौर पर उन्हें अर्पित करें तो वे भक्तों के सारे दुख दूर कर देते हैं. लेकिन क्या आपने सोचा है कि आखिर बेलपत्र भोलेनाथ को इतनी पसंद क्यों है और उनका जलाभिषेक क्यों किया जाता है? आइए आपको बताते हैं.
दरअसल समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल विष निकला तो उसके असर से सृष्टि का विनाश होने लगा. इसे रोकने के लिए महादेव ने हलाहल को पीकर अपने कंठ में रोक लिया. इसकी वजह से उन्हें बहुत जलन होना शुरू हो गई और कंठ नीला पड़ गया. चूंकि बेलपत्र विष के प्रभाव को कम करता है लिहाजा देवी-देवताओं ने उनकी जलन को कम करने के लिए उन्हें बेलपत्र देना शुरू किया और महादेव बेलपत्र चबाने लगे.
इस दौरान उनके सिर को ठंडा रखने के लिए जल भी अर्पित किया गया. बेलपत्र और जल के प्रभाव से भोलेनाथ के शरीर में उत्पन्न गर्मी शांत हो गई. इसके बाद उनका एक नाम नीलकंठ भी पड़ गया. तभी से महादेव पर जल और बेलपत्र चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई.
बेलपत्र के हैं कुछ नियम
1. बेलपत्र की तीन पत्तियों वाला गुच्छा भगवान शिव को चढ़ाया जाता है माना. जाता है कि इसके मूलभाग में सभी तीर्थों का वास होता है.
2. यदि महादेव को सोमवार के दिन बेलपत्र चढ़ाना है तो उसे रविवार के दिन ही तोड़ लेना चाहिए क्योंकि सोमवार को बेल पत्र नहीं तोड़ा जाता है. इसके अलावा चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या को संक्रांति के समय भी बेलपत्र तोड़ने की मनाही है.
3. बेलपत्र कभी अशुद्ध नहीं होता. पहले से चढ़ाया हुआ बेलपत्र भी फिर से धोकर चढ़ाया जा सकता है.
4. बेलपत्र की कटी-फटी पत्तियां कभी भी नहीं चढ़ानी चाहिए. इन्हें खंडित माना जाता है.
5. बेलपत्र भगवान शिव को हमेशा उल्टा चढ़ाया जाता है. यानी चिकनी सतह की तरफ वाला वाला भाग शिवजी की प्रतिमा से स्पर्श कराते हुए ही बेलपत्र चढ़ाएं. बेलपत्र को हमेशा अनामिका, अंगूठे और मध्यमा अंगुली की मदद से चढ़ाएं. इसके साथ शिव जी का जलाभिषेक भी जरूर करें.
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