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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, होलिका दहन में नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है
हिंदू धर्म में होली का पर्व बड़े त्योहारों में एक माना गया है. देशभर में ऑफिस, स्कूल, बैंक और भी सभी जगह बंदी होती है क्योंकि होली का त्योहार पूरे देश में मनाया जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है. इस दिन को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं और आज भी उन्हें धूमधाम से लोग मनाते हैं. उनमें से एक ये भी मान्यता है कि होलिका दहन में गाय के गोबर के उपलों को जलाना शुभ होता है. लेकिन ऐसा किया क्यों जाता है इसके पीछे धार्मिक महत्व है जिसके बारे में हम आपको बताते हैं.
गोबर के उपले का होलिका दहन में क्या है महत्व? (Holika Dahan 2023)
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, होलिका दहन में नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है. इसलिए लोग जितनी बुरी चीजें हैं होलिका दहन के साथ भस्म कर देते हैं. अगर बात गाय के गोबर से बने उपलों को जलाने के पीछे क्या धार्मिक मान्यता है तो इसकी गहराई को समझना जरूरी है. ऐसा माना जाता है कि हिंदू धर्म में गाय पूज्नीय होती है और उसके गोबर की भी लोग पूजा करते हैं. गोबर के उपलों को शुभता का प्रतीक मानते हैं और इन्हें जलाने से आस-पास की नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं. इसलिए हिंदू धर्म में किसी की मृत्यु होती है तो शव के पास उपलों को जलाया जाता है जिससे नकारात्मक शक्ति घर में विराजमान ना हो जाएंगे. यज्ञ हो या हवन हो, गाय के गोबर का इस्तेमाल हर धार्मिक चीजों में किया जाता है.
हिंदू धर्म में गाय की पूजा की जाती है और गाय से मिलने वाले गोबर को भी शुद्धता का प्रतीक मानते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लोग खाना बनाने के लिए जब चुल्हे पर आग जलाया जाता है तो उपलों का ही उपयोग करते हैं. मान्यता के अनुसार, गाय के उपलों का इस्तेमाल करके घर में समृद्धि आती है और नकारात्मक शक्ति दूर होती है. कई बार गाय के गोबर का इस्तेमाल जड़ी बूटियां बनाने में किया जाता है तो अगर होलिका दहन में उपले जलाए जाते हैं तो आस-पास की सभी गंदगी, नकारात्मक शक्ति और भी बुरे वायरस मर जाते हैं. ऐसी मान्यता वैज्ञानिक कारण में भी बताई गई है.
इस साल होली 8 मार्च को मनाई जाएगी.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, अगर गोबर के उपले को जलाने से जो उसमें से धुंआ निकलता है उससे वातावरण प्रदूषित नहीं होता. हानिकारक बैक्टीरिया भी मर जाते हैं और गोबर के कंडे के धुएं से पर्यावरण शुद्ध होता है इसलिए इन्हें जलाने से कोई नुकसान नहीं होता. यही वजह है कि आज भी गोबर के उपलों को होलिका दहन में जलाया जाता है और इससे एनवायरमेंट को भी फायदा पहुंचता है.
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Apurva Srivastav
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