- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- धर्म-अध्यात्म
- /
- श्राद्ध, तर्पण और...
x
सनातन धर्म में साल के 15 दिनों को पूर्वजों को समर्पित किया गया है जिसे पितृपक्ष के नाम से जाना जाता है इस दौरान लोग अपने मृत पूर्वजों को याद कर उनका श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करते है माना जाता है कि ऐसा करने से पितर प्रसन्न होकर कृपा करते हैं। इस साल पितृपक्ष की शुरुआत 29 सितंबर से हो रही है जिसका समापन 14 अक्टूबर को हो जाएगा।
मान्यता है कि पितृपक्ष के दिनों में पूर्वज धरती पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान पाकर प्रसन्न हो जाते हैं और वंशजों को सुख समृद्धि व उन्नति का आशीर्वाद प्रदान करते हैं पिंतृपक्ष के दिनों में श्राद्ध तर्पण और पिंडदान को विशेष माना जाता है लेकिन कई ऐसे लोग हैं जिन्हें इन तीनों में अंतर नहीं पता है तो ऐसे में आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा श्राद्ध तर्पण और पिंडदान में अंतर बता रहे हैं तो आइए जानते है।
जानें श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान में अंतर—
पूर्वजों को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए किया जाने वाला श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान एक नहीं बल्कि ये अलग अलग है और इनमें विशेष अंतर भी है। पितृपक्ष के दिनों में मृतक परिजनों को श्रद्धापूर्वक याद करने को श्राद्ध कहा जाता है।
वही इसके अलावा पिंडदान का मतलब भोजन का दान करने से हैं। पिंडदान में व्यक्ति अपने पूर्वजों को भोजन का दान करता है। पूर्वज पितृपक्ष के दिनों में गाय, कौआ, चींटी, कुत्ता और देवताओं के रूप में अगर अपने वंशजों द्वारा दान किए गए भोजन को ग्रहण करते है और उन्हें आशीर्वाद प्रदान करते है।
यही वजह है कि पितृपक्ष के दिनों में भोजन के पांच अंश निकाला जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तर्पण का मतलब जल के दान से है पितृपक्ष के दिनों में वंशज हाथ में जल, कुशा, अक्षत, तिल लेकर पितरों का तर्पण करते हैं मान्यता है कि ऐसा करने से पूर्वजों की कृपा मिलती है और पितृदोष दूर हो जाता है।
Next Story