धर्म-अध्यात्म

क्या है चतुर्थी श्राद्ध और ये है इसका समय, जानें महत्व और पूजा विधि

Tara Tandi
24 Sep 2021 11:08 AM GMT
क्या है चतुर्थी श्राद्ध और ये है इसका समय, जानें महत्व और  पूजा विधि
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पितृ पक्ष सभी हिंदुओं के लिए महत्वपूर्ण दिनों में से एक है,

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| पितृ पक्ष सभी हिंदुओं के लिए महत्वपूर्ण दिनों में से एक है, क्योंकि इस पक्ष के दौरान, वो पितृ पूजा करके अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देते हैं. आज पितृ पक्ष का चौथा दिन है जिसे चतुर्थी श्राद्ध 2021 के नाम से जाना जाता है. इस दिन, परिवार के सदस्य उस पूर्वज के लिए श्राद्ध अनुष्ठान करते हैं, जिसकी मृत्यु किसी भी महीने के दो चंद्र पक्ष में से किसी एक की चतुर्थी के दिन हुई थी.

उत्तर भारत में, पूर्णिमांत कैलेंडर का पालन किया जाता है इसलिए आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष के पंद्रह दिनों को पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है. दक्षिण भारत में, अमावस्यंत कैलेंडर का पालन किया जाता है, इसलिए भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष के पंद्रह दिनों को पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है. श्राद्ध अनुष्ठान करने के लिए भाद्रपद पूर्णिमा भी शामिल है

चतुर्थी श्राद्ध 2021: तिथि और समय

चतुर्थी तिथि 24 सितंबर सुबह 08:29 बजे से शुरू हो रही है

तृतीया तिथि 25 सितंबर को सुबह 10:36 बजे समाप्त होगी

कुटुप मुहूर्त – 11:48 सुबह – 12:37 दोपहर

रोहिना मुहूर्त – दोपहर 12:37 बजे – दोपहर 01:25 बजे

अपर्णा काल – 01:25 दोपहर – 03:50 दोपहर

सूर्योदय 06:10 प्रात:

सूर्यास्त 06:15 सायं

चतुर्थी श्राद्ध: महत्व

पितृ पक्ष श्राद्ध कर्म है. कुटुप मुहूर्त और रोहिना मुहूर्त को श्राद्ध करने के लिए अच्छा माना जाता है. उसके बाद का मुहूर्त अपराह्न काल समाप्त होने तक रहता है. श्राद्ध के अंत में तर्पण किया जाता है.

गरुड़ पुराण बताता है कि यमपुरी के लिए आत्मा की यात्रा मृत्यु के तेरह दिनों के बाद शुरू होती है. ये वहां सत्रह दिन बाद पहुंचती है. यम के दरबार में पहुंचने के लिए आत्मा ग्यारह महीने की यात्रा करती है. इस अवधि के दौरान भोजन और पानी प्रदान करने के लिए पिंडदान और तर्पण इस विश्वास के साथ किया जाता है कि ये आत्मा की भूख और प्यास को संतुष्ट करेगा.

चतुर्थी श्राद्ध: अनुष्ठान

– पूर्वजों को याद करने और उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए श्राद्ध संस्कार किए जाते हैं.

– तर्पण और पिंडदान परिवार के किसी सदस्य द्वारा किया जाता है, अधिकतर परिवार के सबसे बड़े पुरुष द्वारा.

– श्राद्ध कर्म उचित समय पर मंत्रों और उचित विधि से करना चाहिए.

– पहले गाय को, फिर कौवे, कुत्ते और चींटियों को भोजन कराया जाता है. कौवे को इस दुनिया और पूर्वजों की दुनिया के बीच जोड़ने वाली कड़ी माना जाता है.

– सम्मान के साथ ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है. उन्हें दक्षिणा और कपड़े भी दिए जाते हैं.

– कई लोग अनाथालय और वृद्धाश्रम में खाना बांटते हैं.

– कुछ लोग इस दिन व्रत भी रखते हैं.

– अपराह्न यानि दोपहर के समय में अनुष्ठान करने के बाद प्रसाद का वितरण किया जाता है.

नोट- यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.

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