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ऊर्ध्व दिशा के देवता ब्रह्मा है। ब्रह्मा हम सभी के जन्मदाता हैं। इस दिशा का सबसे ज्यादा महत्व है।
दस दिशाएं होती हैं। पूर्व, आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर, ईशान, ऊर्ध्व और अधो। ऊर्ध्व का अर्थ होता है उपर। दिशा में जहां दिशा शूल होता है, वहीं राहु काल भी नुकसानदायक है। दूसरी ओर, प्रत्येक दिशा के दिग्पाल होते हैं और उनके ग्रह स्वामी भी। आओ जानते हैं ऊर्ध्व दिशा के बारे में।
1. ऊर्ध्व दिशा के देवता ब्रह्मा है। ब्रह्मा हम सभी के जन्मदाता हैं। इस दिशा का सबसे ज्यादा महत्व है।
2. आकाश ही ईश्वर है। जो व्यक्ति ऊर्ध्व मुख होकर प्रार्थना करते हैं उनकी प्रार्थना में असर होता है। वेदानुसार मांगना है तो ब्रह्म और ब्रह्मांड से मांगे किसी ओर से नहीं। उससे मांगने से सबकुछ मिलता है।
3. घर की छत, छज्जे, उजाल दान, खिड़की और बीच का स्थान इस दिशा का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन सभी को सुंदर और स्वच्छ बनाकर रखने से प्रगति के सभी रास्ते खुल जाते हैं।
4. दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की तरफ ढलान होना चाहिए। घर की छत में किसी भी प्रकार का उजालदान न हो। तिरछी छत बनाने से बचें, छत की ऊंचाई कम से कम 10 और ज्यादा से ज्यादा 12 फुट तक होनी चाहिए। छत साफ सुधरी रखें और पानी का टैंक नैऋत्य दिशा में रखें।
5. घर की वायव्य, उत्तर, ईशान और पूर्व दिशा के उजालदान ही सही होते हैं। आग्नेय, दक्षिण और नैऋत्य दिशा में उजालदान नहीं बनाना चाहिए। आग्नेय में रसोईघर है तो उजालदान उचित दिशा में बना सकते हैं। बाथरूम और टॉयलेट में उचित दिशा में छत से लगे हुए उजालदान होना चाहिए।
6. पश्चिमी, पूर्वी और उत्तरी दीवारों पर खिड़कियों का निर्माण शुभ माना गया है। उत्तर दिशा में खिड़की होने से घर में धन और समृद्धि के द्वारा खुल जाते हैं। खिड़किया दो पल्ले वाली होना चाहिए और इन्हें खोलने एवं बंद करने में आवाज नहीं होना चाहिए। पल्ले अंदर की ओर खुलना चाहिए बाहर की ओर नहीं। इसके अलावा इस बात की जांच करें कि आपके घर में दरवाजे और खिड़कियां विषम संख्या में तो नहीं हैं। अगर ऐसा है तो किसी एक दरवाजे या खिड़की को बंद कर दें और उनकी संख्या को सम कर दें।
7. मध्य भाग में गड्डा नहीं होना चाहिए। मध्यभाग का ईशान की तरह खाली और साफ स्वच्छ होना जरूरी है। परेशानियों से घिरे रहने वाले इस घर के मध्यभाग को ठीक कर देने से सभी ठीक होने लगता है। आपसी संबंध मधुर रहते हैं। घर में धन, समृद्धि अर शांति की बनी रहती है। मानसिक शांति और निरोगी काया रहती है। घर के सभी सदस्य तरक्की करते रहते हैं।
8. आकाश तत्व से हमारी आत्मा में शांति मिलती है।
9. इस दिशा में पत्थर फेंकना, थूकना, पानी उछालना, चिल्लाना या ऊर्ध्व मुख करके अर्थात आकाश की ओर मुख करके गाली देना वर्जित है। इसका परिणाम घातक होता है।
10. दिशा शूल : इस दिशा में जाने का कोई दिशा शूल नहीं।
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Apurva Srivastav
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