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जनता से रिश्ता वेबडेस्क | कर्नाटक की जनता ने इस बार रोटी पलट दी। बजरंग दल और बजरंगबली के मुद्दे के सहारे चुनाव जीतने की भाजपा की कोशिश काम नहीं आई। कांग्रेस के लिए अच्छी खबर यह है कि हिमाचल के बाद कर्नाटक भी उसकी झोली में आ गया है। छत्तीसगढ़ और राजस्थान में वह पहले से सत्ता में है। बिहार, झारखंड और तमिलनाडु में उसकी गठबंधन सरकार है। बहरहाल, कर्नाटक की जीत के बावजूद कांग्रेस के सामने कुछ चुनौतियां हैं। आइए इन चुनौतियों के बारे में जानते हैं...
कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह रहेगी कि मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए? कांग्रेस के पास कर्नाटक में दो चेहरे हैं- पूर्व सीएम सिद्धारमैया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार। कांग्रेस के लिए यह स्थिति 2018 जैसी है, जब मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में उसके पास दो-दो चेहरे थे।
राजस्थान में क्या हुआ: यहां भी चुनावी जीत के 20 महीने बाद ही ऐसे हालात बनते दिखे, जब मुख्यमंत्री बनाए गए अशोक गहलोत के खिलाफ सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों ने बगावत कर दी। गहलोत ने हालांकि सत्ता बचा रखी है, लेकिन पायलट ने अब तक बागी तेवर अपना रखे हैं।
कर्नाटक में पूर्व सीएम सिद्धारमैया कुरबा समुदाय से आते हैं। वहीं, शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय से हैं और प्रदेश अध्यक्ष हैं। दोनों नेताओं के अलग-अलग धड़ों को एक रखने में कांग्रेस आलाकमान अब तक कामयाब रहा है, लेकिन नतीजों के बाद जिस धड़े को सत्ता में हिस्सेदारी नहीं मिलेगी, उसे कैसे संतुष्ट किया जाएगा, यह कांग्रेस को देखना होगा। सिद्धारमैया पहले ही कह चुके हैं कि यह उनका आखिरी चुनाव है, ऐसे में वे मुख्यमंत्री पद पर एक आखिरी मौका भी आजमाना चाहेंगे। उनके पास पूरे पांच साल सरकार चलाने का अनुभव भी है। वहीं, डीके शिवकुमार चुनाव जीतने के बाद ही बोल चुके हैं कि उन्हें डिप्टी सीएम पद का ऑफर ठुकराकर जेल जाना मंजूर था। इस तरह वे आलाकमान के सामने अपनी मजबूत दावेदारी पेश कर रहे हैं।