- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- धर्म-अध्यात्म
- /
- वीर अंगद का चरित्र जिस...
धर्म-अध्यात्म
वीर अंगद का चरित्र जिस दिव्यता से रंगा है, उसे हम भलीभाँति जानते हैं
Manish Sahu
26 Sep 2023 2:20 PM GMT
x
धर्म अध्यात्म: भगवान श्रीराम सुबेल पर्वत पर वीर अंगद की बड़ी व्याकुलता के साथ प्रतीक्षा कर रहे हैं। वीर अंगद के लिए इससे बड़ा सुंदर क्षण और क्या हो सकता है, कि जन्मों-जन्मों जिस प्रभु की उसने प्रतीक्षा की थी, आज वही ईश्वर उसकी प्रतीक्षा में राह ताक रहे हैं। वीर अंगद का धरा पर आना मानों पूर्णतः सफल हो चुका था। ऐसे में अगर उनके प्राण आज ही निकल जायें, तो भी कोई दुख का विषय नहीं होना चाहिए। कारण कि श्रीराम जी ने वीर अंगद की दृढ़ भावना को देखते ही उन्हें लंका भेजा था। श्रीराम जी ने एक बार भी नही सोचा था, कि वीर अंगद को रावण ने अपनी बातों से भरमा दिया, तो क्या होगा? लेकिन धन्य है वीर अंगद की महान माता, जिसने ऐसे वीर व भक्त सपूत को जन्म दिया। वीर अंगद का श्रीराम जी से आंतरिक जुड़ाव भी तो देखिए किस दैवीय स्तर पर है। क्योंकि वीर अंगद ने रावण से ऐसा वादा कर दिया था, कि अगर रावण उस वादे को पूर्ण कर देता, तो श्रीराम जी एक झटके में ही श्रीसीता जी को हार जाते। जी हाँ! वीर अंगद ने जब रावण को कहा था, कि हे रावण! तुम अथवा तुम्हारी सभा में कोई भी अगर मेरे पैर को धरा से हटा दे, तो श्रीराम जी श्रीसीता जी को हार कर वापिस लौट जायेंगे। विचार कीजिए, क्या वीर अंगद का यह प्रण व हुँकार किसी भी दृष्टिकोण से उचित थी? क्योंकि संसारिक बुद्धि से सोचने पर लगता है, कि अगर गलती से भी वीर अंगद का पैर अपने स्थान से उठ जाता, तो इसके परिणाम स्वरुप श्रीराम जी को श्रीसीता जी को खोना पड़ता। अगर ऐसा संभव हो जाता, तो क्या इतिहास वीर अंगद को क्षमा करता? कारण कि वीर अंगद की एक गलती के कारण पूरा इतिहास की बदल जाता।
युगों-युगों तक वीर अंगद को घृणा का पात्र बन कर जीना पड़ता। लेकिन आज वीर अंगद का चरित्र जिस दिव्यता से रंगा है, उसे हम भलीभाँति जानते हैं। वीर अंगद ने जब रावण के समक्ष यह प्रण किया था, तो सुनने वाले दर्शकों के हृदयों में तो भले ही कंपन महसूस हो रही हो, लेकिन वीर अंगद का हृदय हिमालय की भाँति अटल व अडिग था। कारण सिर्फ यह था, कि वीर अंगद ने यह सोच कर तो अपना पैर रोपा ही नहीं था, वह पैर उसका स्वयं का था। उसे कहाँ भान था कि वह बालि पुत्र वीर अंगद है। उसे तो यह भी भान या ज्ञान नहीं था, कि वह श्रीराम जी का दूत है। अपितु वह श्रीराम जी के प्रेम व भक्ति भाव में इस स्तर डूब चुका था, कि उस स्तर पर यह अंतर ही मिट जाता है, कि कौन भक्त है, अथवा कौन ईश्वर? वहाँ तो एक ब्रह्म की ही अवस्था रह जाती है। जीव ब्रह्ममय हो जाता है। फिर उसके जीवन में कोई भी निर्णय वह जीव नहीं लेता, अपितु स्वयं भगवान ही संपूर्ण निर्णय लेते हैं। वह तो मात्र एक यंत्र की भाँति व्यवहार कर रहा होता है। या कह लो कि वह एक कठपुतली होता है। जिसका नाचना, उठना अथवा बैठना उसके वश में नहीं होता। वो तो धागा खिंचने पर है, कि कौन से अंग का धागा खिंचा है। जहाँ का धागा खिंचा, उसी अंग में हरकत हो जाती है। वीर अंगद अपने आपे में होते तो कभी भी यह दावा न ठोकते, कि अगर मेरा पैर उठ गया तो श्रीराम अपनी सीता जी को हार कर चले जायेंगे। वीर अंगद को भला क्या अधिकार था कि वे माता सीता जी के संबंध में ऐसा दावा ठोक सकें। निश्चित ही श्रीराम जी ही, वीर अंगद को अपना यंत्र बना कर अपनी बात कह रहे थे।
Tagsवीर अंगद का चरित्रजिस दिव्यता से रंगा हैउसे हम भलीभाँति जानते हैंताज़ा समाचारआज की बड़ी खबरआज की महत्वपूर्ण खबरहिंदी खबरजनता से रिश्ताबड़ी खबरदेश-दुनिया की खबरराज्यवार खबरहिंदी समाचारआज का समाचारबड़ा समाचारनया समाचारदैनिक समाचारब्रेकिंग न्यूजLATEST NEWS TODAY'SBIG NEWS TODAY'SIMPORTANT NEWSHINDI NEWSJANATA SE RISHTACOUNTRY-WORLD NEWSSTATE-WISE NEWSTODAY NEWSNEWS DAILYNEWSBREAKING NEWSमिड- डे न्यूज़खबरों का सिलसिलाMID-DAY NEWS .
Manish Sahu
Next Story