धर्म-अध्यात्म

सूर्यदेव को प्रसन्न करने के उपाय, जानें महत्त्व

Khushboo Dhruw
7 April 2024 3:57 AM GMT
सूर्यदेव को प्रसन्न करने के उपाय, जानें महत्त्व
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नई दिल्ली : रविवार, सप्ताह का पहला दिन, भगवान सूर्यदेव का दिन माना जाता है। सूर्यदेव सौरमंडल के केंद्र में स्थित ग्रह हैं और जीवन के लिए ऊर्जा का मुख्य स्रोत हैं। वे आत्मा, स्वास्थ्य, यश और सफलता के प्रतीक हैं।भगवान सूर्यदेव केवल एक देवता नहीं हैं, वे जीवनदायी शक्ति हैं। वे ब्रह्मांड के पालक हैं और सभी जीवों को ऊर्जा प्रदान करते हैं। सूर्यदेव की उपासना करने से न केवल भौतिक समृद्धि प्राप्त होती है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति भी होती है। अगर आप भी जीवन के तमाम दुखों से छुटकारा पाना चाहते हैं तो आपको प्रत्येक रविवार की दिन भगवान सूर्य देव की विधि विधान से पूजा करनी चाहिए साथ ही साथ सूर्य स्तुति का पाठ भी अवश्य करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि सूर्यास्त का पाठ करने से भगवान सूर्य देव प्रसन्न करें और साधकों को आशीर्वाद देते हैं।
रविवार का महत्व
रविवार भगवान सूर्यदेव का दिन होने के कारण इस दिन उनकी पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन सूर्यदेव की पूजा करने से आरोग्य, समृद्धि, ज्ञान और यश की प्राप्ति होती है। रविवार का दिन दान-पुण्य करने के लिए भी उत्तम माना जाता है। इस दिन सूर्यदेव की उपासना करने से रोग, शत्रु, ऋण और ग्रह बाधाओं से मुक्ति मिलती है। रविवार के दिन सूर्य नमस्कार करने से शरीर स्वस्थ रहता है और मन शांत होता है।
सूर्यदेव को प्रसन्न करने के उपाय
1. रविवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
2. एक चौकी या आसन पर बैठकर भगवान सूर्य की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
3. सूर्यदेव को जल, लाल फूल, मौसमी फल, गुड़ और धूप अर्पित करें।
4. “ॐ सूर्याय नमः” मंत्र का जाप करें या भगवान सूर्य के स्तोत्र का पाठ करें।
5. धूप की आरती करें और भगवान सूर्य से अपनी मनोकामनाएं प्रार्थना करें।
6. रविवार के दिन सूर्यदेव को तांबे के लोटे में जल अर्पित करें।
6. लाल रंग के वस्त्र पहनें और रविवार के दिन दान करें।
7. सूर्यदेव को अर्पित किए गए जल को पीपल या के वृक्ष पर चढ़ाएं।
8. रविवार के दिन सूर्य नमस्कार करें।
9. सूर्य मंत्र “ॐ गायत्र्य सूर्याय नमः” का जप करें।
।। श्री सूर्य स्तुति ।।
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन ।।
त्रिभुवन-तिमिर-निकन्दन, भक्त-हृदय-चन्दन॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
सप्त-अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।
दु:खहारी, सुखकारी, मानस-मल-हारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
सुर-मुनि-भूसुर-वन्दित, विमल विभवशाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
सकल-सुकर्म-प्रसविता, सविता शुभकारी।
विश्व-विलोचन मोचन, भव-बन्धन भारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
कमल-समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।
सेवत साहज हरत अति मनसिज-संतापा॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
नेत्र-व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा-हारी।
वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।
हर अज्ञान-मोह सब, तत्त्वज्ञान दीजै॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
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