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धर्म-अध्यात्म
काशी में शिव संग करें शक्तिपीठ के दर्शन, यहां है माता की दो प्रतिमाएं
Deepa Sahu
13 Oct 2021 6:30 PM GMT
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देश की धार्मिक राजधानी माने जानी वाली काशी बाबा विश्वनाथ के लिए ही नहीं बल्कि शक्तिपीठ के लिए भी जानी जाती हैं.
देश की धार्मिक राजधानी माने जानी वाली काशी बाबा विश्वनाथ के लिए ही नहीं बल्कि शक्तिपीठ के लिए भी जानी जाती हैं. मान्यता है कि जिन स्थानों पर देवी के अंग गिरे वो सभी स्थान शक्तिपीठ बन गये. जहां पर भगवती सती का कर्णकुंडल गिरा आज वह पावन स्थान मां विशालाक्षी के पावन धाम के रूप में जाना जाता है. मान्यता है कि भगवान शिव ने इन सभी शक्तिपीठों पर जाकर साधना की और अपने स्वरूप से काल भैरव को उत्पन्न किया. वाराणसी में भी इस शक्तिपीठ के समीप काल भैरव विराजमान हैं. भक्ति, शक्ति और समृद्धि प्रदान करने वाले पावन शक्तिपीठों में से एक है मां विशालाक्षी देवी का दिव्य धाम.
शिव और शक्ति का है संगम
वाराणसी स्थित इस पावन शक्तिपीठ को स्थानीय लोग दक्षिण की देवी के रूप में जानते हैं. मंदिर की बनावट में दक्षिण भारतीय कलाकृतियों के दर्शन होते हैं. मां विशालाक्षी देवी का यह मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक बाबा विश्वनाथ के पावन धाम के समीप मीरघाट मोहल्ले में स्थित है. प्राचीन काशी नगरी शिव और शक्ति दोनों का एक प्रमुख केंद्र है. मां गंगा के तट पर बसी काशी नगरी में आने वाला तीर्थयात्री गंगा स्नान के पश्चात् बाबा विश्वनाथ के दर्शनों के साथ आद्यशक्ति के दर्शन करना नहीं भूलता. क्योंकि इससे उसे शिव और शक्ति दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
मंदिर में हैं माता की दो प्रतिमाएं
काशी के इस शक्तिपीठ में माता विशालाक्षी की दो प्रतिमा है – एक चल और दूसरी अचल. दोनों ही प्रतिमाओं का समान रूप से पूजा – अभिषेक आदि होता है. चल मूर्ति की विशेष पूजा नवरात्र के समय विजयादशमी पर्व वाले दिन घोड़े पर बैठा कर की जाती है. जबकि अचल मूर्ति की विशेष पूजा साल में दो बार की जाती है. जिसमें से एक भादौं तृतीया के दिन ( कृष्ण पक्ष की कजरी वाले दिन ) माता की जयंती के रूप में, तो दूसरी दीपावली के दूसरे दिन माता का अन्नकूट करके किया जाता है. जबकि चैत्र के नवरात्र में मां विशालाक्षी का नव गौरियों में पंचमी के दिन माताजी का दर्शन होता है. हालांकि प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन माता के दर्शन का विशेष महत्व माना जाता है.
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