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धर्म-अध्यात्म
Vinayaka Chaturthi Vrat Katha: विनायक चतुर्थी पर जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, जीवन की हर समस्या होगी दूर
Bharti Sahu 2
5 Dec 2024 2:45 AM GMT
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Vinayaka Chaturthi Vrat Katha: धार्मिक मान्यता है कि विनायक चतुर्थी के दिन गणपति बप्पा के विनायक स्वरूप की पूजा करने और व्रत रखने से जीवन के सभी दुख-दर्द दूर हो जाते हैं. साथ ही जीवन में आ रही सभी प्रकार की बाधाओं से भी छुटकारा मिलता है. विनायक चतुर्थी के दिन पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए. मान्यता है कि विनायक चतुर्थी व्रत में कथा का पाठ करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है और मनचाही इच्छा पूरी होती है| हिंदू पंचांग के अनुसार, एकादशी व्रत की तरह ही विनायक चतुर्थी का व्रत भी एक महीने में दो बार किया जाता है. एक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर और दूसरा शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर. इस प्रकार हर माह की चतुर्थी तिथि भगवान गणेश की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित होती है. कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. आज यानी 5 दिसंबर को विनायक चतुर्थी का व्रत किया जा रहा है| आइए पढ़ते हैं विनायक चतुर्थी की व्रत कथा|
विनायक चतुर्थी की व्रत कथा Vinayaka Chaturthi ki vrat katha in hindi
धर्म ग्रंथों में वर्णित पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय में राजा हरिश्चंद्र नाम का राजा एक राज्य पर राज करता था. उस राज्य में एक कुम्हार था जो अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए मिट्टी के बर्तन बनाता था. वह कुम्हार अक्सर परेशान रहता था क्योंकि जब भी वो बर्तन बनाता, तो उसके बर्तन कच्चे रह जाते थे. अब मिट्टी के कच्चे बर्तनों की कमी से उसकी आमदनी कम होने लगी, क्योंकि लोग उसके मिट्टी के बर्तन नहीं खरीदते थे|
आप अपनी समस्या का समाधान खोजने के लिए वह कुम्हार एक पुजारी से मिला. कुम्हार ने पुजारी को अपने सारी दुविधा बताई. उसकी बात सुनकर पुजारी ने कुम्हार को उपाय बताते हुए कहा कि जब भी तुम मिट्टी के बर्तन पकाओ, तो उनके साथ आंवा में एक छोटे बालक को डाल देना. पुजारी के कहे अनुसार कुम्हार ने अपने मिट्टी के बर्तनों को पकाने के लिए आंवा रखा और उसके साथ एक बालक को भी रख दिया|
जिस दिन कुम्हार ने यह किया, उस दिन संयोग से विनायक चतुर्थी थी. उस बालक की मां बहुत समय से अपने बेटे की तलाश करती रही, लेकिन उसे नहीं मिला तो वह परेशान हो गई. उसने भगवान गणेश से अपने बच्चे की कुशलता के लिए खूब प्रार्थना की. अगले दिन सुबह, जब कुम्हार ने अपने मिट्टी के बर्तनों को देखा कि उसके सभी बर्तन सभी अच्छे से पक गए थे. साथ ही, बच्चा जो आवां में था, वह सही सलामत था और उसे कुछ नहीं हुआ था|
यह देखकर कुम्हार डर गया और राजा के दरबार में गया. राजा के दरबार में जाकर कुम्हार ने सब कुछ बताया. इसके बाद राजा हरिशचंद्र ने बालक और उसकी माता को दरबार में बुलाया. राजा ने बालकर की मां से पूछा कि आखिर तुमने ऐसा क्या किया जो तुम्हारे बालक को आंव में भी कुछ नहीं हुआ. यह सुनने के बाद उस बालकर की मां ने कहा मैंने विनायक चतुर्थी का व्रत रखा था और गणपति बप्पा की पूजा की थी. इसके बाद कुम्हार ने भी विनायक चतुर्थी का व्रत रखना शुरू कर दिया और इस व्रत के प्रभाव से उसके जीवन के सभी कष्ट दूर हो गए और वह खुशहाल जीवन व्यतीत करने लगा|
विनायक चतुर्थी की दूसरी व्रत कथा Margshishra vinayaka chaturthi vrat katha
महादेव और माता पार्वती एक बार नर्मदा नदी के तट पर चौपड़ खेल रहे थे. खेल में जीत या हार का निर्णय लेने के लिए महादेव ने एक पुतला बनाया और उसमें प्राण डाल दिए. फिर शिवजी ने उस बालक को कि वह इस खेल के विजेता को चुने. महादेव और माता पार्वती ने खेलना शुरू किया और माता पार्वती ने तीन बार जीत हासिल की. खेल खत्म होने पर जब पूछा गया कि कौन विजेता है, तो बालक ने भगवान को विजेता घोषित किया. यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं और उन्होंने बालक को अपाहिज रहने का श्राप दे दिया|
बालक ने माता पार्वती से माफी मांगी और कहा कि ऐसा भूल से हुआ था. माता पार्वती ने फिर कहा कि श्राप वापस नहीं लिया जा सकता, लेकिन इसका एक समाधान है. माता पार्वती ने बालक को उपाय बताते हुए कहा कि भगवान गणेश की पूजा करने के लिए नाग कन्याएं आएंगी और तुम्हें उनके कहे अनुसार व्रत करना होगा, जिससे तुम्हें इस श्राप से छुटकारा मिलेगा|
वह बालक कई वर्षों तक दुख से जूझता रहा. फिर एक दिन नाग कन्याएं भगवान गणेश की पूजा करने आईं. बालक ने उनसे पूछा कि कैसे गणेश पूजा की जाती है. नाग कन्याओं के बताए अनुसार उस बालक ने सच्चे मन से भगवान गणेश की पूजा की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने बालक से वरदान मांगने को कहा|
बालक ने भगवान गणेश से विनती की कि, हे विनायक, मुझे इतनी शक्ति दें कि मैं पैरों से कैलाश पर्वत पर जा सकूं. बालक को भगवान गणेश ने आशीर्वाद दिया और अंतर्ध्यान हो गए. इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर गया और भगवान महादेव को श्राप से छुटकारा मिलने की कहानी सुनाई. चौपड़ वाले दिन से माता पार्वती भगवान शिव से रुष्ट हो गई थीं|
बालक के बताए अनुसार, भगवान शिव ने भी 21 दिनों तक भगवान गणेश का व्रत रखा था. इसके बाद भगवान महादेव के व्रत करने से माता पार्वती ने अपनी नाराजगी दूर कर दी. धार्मिक मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से भगवान गणेश की पूजा और आराधना करता है, उसके सभी दुख दूर हो जाते हैं. साथ ही इस कथा का पाठ करने और सुनने से सभी विघ्न से छुटकारा मिलता है|
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