धर्म-अध्यात्म

विनायक चतुर्थी आज, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और कथा

Shiddhant Shriwas
12 Aug 2021 8:43 AM GMT
विनायक चतुर्थी आज, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और कथा
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सावन मास की विनायक चतुर्थी 12 अगस्त को है। यह त्योहार भगवान गणेश जी को समर्पित है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Vinayaka Chaturthi August 2021: सावन मास की विनायक चतुर्थी 12 अगस्त को है। यह त्योहार भगवान गणेश जी को समर्पित है। इस दिन गणेश भगवान की विधि-विधान से पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से जातकों के समस्त प्रकार के विघ्न, संकट मिट जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार, गणेश भगवान सभी देवताओं से पहले पूजे जाते हैं। हर-पूजा पाठ का प्रारंभ उन्हीं के आवाह्न के साथ होता है। गणपति महाराज शुभता, बुद्धि, सुख-समृद्धि के देवता हैं। जहां भगवान गणेश का वास होता है। वहां पर रिद्धि सिद्धि और शुभ लाभ भी विराजते हैं। इनकी पूजा से आरंभ किए गए किसी कार्य में बाधा नहीं आती है इसलिए गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है। विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का विधि-विधान के साथ पूजन करने एवं कथा का सुनने से घर में सौभाग्य और सुख, समृद्धि में वृद्धि होती है। आइए जानते हैं विनायक चतुर्थी का शुभ मुहूर्त, व्रत विधि और कथा।

सावन मास विनायक चतुर्थी शुभ मुहूर्त

हिन्दू पंचांग के अनुसार, सावन शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 11 अगस्त 2021 को शाम 04 बजकर 53 मिनट से 12 अगस्त 2021 को शाम में 03 बजकर 24 मिनट तक रहेगी।

विनायक चतुर्थी पूजा-विधि

सुबह उठ कर स्नान करें। स्नान करने के बाद घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें। भगवान गणेश को स्नान कराएं। स्नान के बाद भगवान गणेश को साफ वस्त्र पहनाएं। भगवान गणेश को सिंदूर का तिलक लगाएं। सिंदूर का तिलक अपने माथे में भी लगाना चाहिए। गणेश भगवान को दुर्वा अतिप्रिय होता है। भगवान गणेश को दुर्वा अर्पित करना चाहिए। गणेश जी को लड्डू, मोदक का भोग लगाएं। गणेश जी की आरती करें।

विनायक चतुर्थी की कथा

एकबार माता पार्वती एक बालक की मूर्ति बनाकर उसमें जान फूंकती हैं। इसके बाद वे कंदरा में स्थित कुंड में स्नान करने के लिए चली जाती हैं। लेकिन जाने से पहले माता अपने पुत्र को आदेश देती हैं कि किसी भी परिस्थिति में किसी भी व्यक्ति को कंदरा में प्रवेश नहीं करने देना। बालक अपनी माता के आदेश का पालन करने के लिए कंदरा के द्वार पर पहरा देने लगता है। कुछ समय बीत जाने के पश्चात भगवान शिव वहां पहुंचते हैं। भगवान शिव जैसे ही कंदरा के अंदर जाने लगते हैं तो वह बालक उन्हें रोक देता है। महादेव बालक को समझाने का प्रयास करते हैं। लेकिन वह उनकी एक नहीं सुनता है। जिससे क्रोधित होकर भगवान शिव त्रिशूल से बालक का शीश धड़ से अलग कर देते हैं।

इस घटना का पता जब माता पार्वती को हुआ तो वह स्नान करके कंदरा से बाहर आती हैं और देखती हैं कि उनका पुत्र धरती पर प्राण विहीन पड़ा है। उसका शीश उसके धड़ से अलग कटा हुआ है। यह दृष्य देखकर माता क्रोधित होती हैं। जिसे देखकर सभी देवी-देवता भयभीत हो जाते हैं। तब भगवान शिव अपने गणों को आदेश देते हैं कि ऐसे बालक का सिर ले आओ जिसकी माता की पीठ उसके बालक की ओर हो। शिवगण एक हथनी के बालक का शीश लेकर आते हैं। भगवान शिव गज के शीश को बालक के धड़ से जोड़कर उसे जीवित कर देते हैं। इसके बाद माता पार्वती शिवजी से कहती हैं कि यह शीश गज का है जिसके कारण सब मेरे पुत्र का उपहास करेंगे। तब भगवान शिव बालक को वरदान देते हैं कि आज से संसार इन्हें गणपति के नाम से जानेगा। इसके साथ ही सभी देव भी उन्हें वरदान देते हैं कि आज से वह प्रथम पूज्य हैं।

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