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धर्म-अध्यात्म
भक्त प्रहलाद और नारद जी से जुड़ा ये सच बहुत कम लोग जानते हैं
Shiddhant Shriwas
18 May 2022 8:39 AM GMT
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एक स्थान से दूसरे स्थान पर सकारात्मक सूचनाओं का आदान-प्रदान करना ही उनका कर्म था
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Narad Jayanti 2022: भारत के पौराणिक पात्र 'नारद मुनि' जिन्हें देवर्षि नारद के नाम से जाना जाता है वे हमें विश्व के प्रथम पत्रकार के रूप में दिखाई देते हैं। एक स्थान से दूसरे स्थान पर सकारात्मक सूचनाओं का आदान-प्रदान करना ही उनका कर्म था। वास्तव में वह लोक मंगल के लिए ही सूचनाओं का आदान-प्रदान कर संसार में सत्य की स्थापना करने वाले प्रथम पत्रकार रहे हैं। इसलिए प्रसिद्ध लेखक प्रकाश चंद्र भुवाल पुरी ने पत्रकार के गुणों का वर्णन करते हुए कहा है कि ''पत्रकार को नारद सा भ्रमणशील होना चाहिए।''
Who is Narad Muni: भारत के धार्मिक और पौराणिक ग्रंथों में महर्षि नारद के जीवन और उनके लोक कल्याणकारी कार्यों की विस्तृत जानकारी मिलती है। मंगलमूर्ति नारद ब्रह्मा के मानसपुत्र हैं। उनका जन्म ही लोक मंगल के लिए हुआ है। वेद और उपनिषद के ज्ञाता देवताओं द्वारा पूजित, पूर्वकृत्यों की बातों के जानकार बुद्धिमान और असंख्य सद्गुणों से सम्पन्न महातेजस्वी नारद जी भगवान पद्मयोनि से प्राप्त विद्या की मनोहर झंकृति के साथ दयामय भगवान के मधुर एवं मंगलमय नामों और गुणों का गान करते हुए लोक लोकांतर का विचरण किया करते हैं। सत्य के लिए लड़ने वाले साधु पुरुषों के हित के लिए नारद जी सतत प्रयत्नशील रहते हैं। शास्त्रों में उनको सचल-कल्पवृक्ष के रूप में बताया गया है। जिस प्रकार कल्पवृक्ष मनोकामनाओं को पूरा करता है उसी प्रकार नारद जी भी लोक मंगल के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहते हैं।
What is the whole idea of Narada Muni: ज्ञान और शिक्षा की दृष्टि से नारद जी सबसे ऊपर हैं। वेदांत, योग, ज्योतिष, आयुर्वेद संगीत आदि अनेक शास्त्रों के आचार्य हैं। प्राणीमात्र की कल्याण कामना वाले नारद जी सुपथ पर अग्रसर होने वाले प्राणियों को सहयोग देते हैं। संसार का भला चाहने वालों का मार्गदर्शन उनका प्रमुख कर्तव्य है। उन्होंने अपने उपदेशों से तीनों लोकों के प्राणियों का परम कल्याण कर प्रभु के पद पदमों में पहुंचा दिया। देवर्षि नारद जी ने जो लोक कल्याण शिक्षण के कार्य किए उनकी गणना करना संभव नहीं है।
देवर्षि नारद ने तीन लाख श्लोक वाला महाभारत देवताओं को सुनाया था तथा व्यास जी को और सावार्णिमनु को पांचरात्रागम का उपदेश दिया था। उन्होंने मार्कण्डेय मुनि को धर्मशास्त्र एवं आत्मज्ञान सिखाया। भगवान श्री वाल्मीकि को रामायण का ज्ञान कराया और श्री व्यास से भागवत लिखाया। ऐसे ज्ञान के आगार थे देवर्षि नारद।
नारद जी ने नैतिकता को जीवन में उतारने के लिए जिस नीति का प्रयोग किया वह सफल रही। उन्होंने सत्य की हत्या नहीं होने दी। भागवत कथा के इस प्रसंग से इसी बात की पुष्टि होती है।
Story of Lord Narada Muni and Prahlada: हिरण्यकशिपु चाहता था कि लोग ईश्वर की पूजा न करें उसे ही ईश्वर मानें और ईश्वर के स्थान पर स्वयं को प्रतिष्ठित करने के लिए उसने घोर हिंसा की। सद्विचारों, सत्यवादी व ईश्वर भक्तों की हत्या उसका प्रमुख कार्य हो गया। हिरण्यकशिपु के कुकृत्य से तीनों लोकों में मानवता कराह उठी।
देवर्षि नारद चिंतित हो उठे कि सत्य की रक्षा कैसे की जाए। जब हिरण्यकशिपु तप करने चला गया तो इंद्र ने उसके नगर पर चढ़ाई कर दी और राजरानी कयाधू को कैद कर लिया। नारद जी ने इंद्र से कहा कि कयाधू को छोड़ दो यह वध योग्य नहीं है।
इंद्र ने कहा, ''मैं कयाधू को नहीं मारूंगा। मारूंगा इसके गर्भस्थ शिशु को।''
नारद जी के समझाने से इंद्र मान गए और कयाधू को नारद जी के आश्रम में छोड़ गए। नारद ने कयाधू को आश्रम में रखकर सत्य की शिक्षा दी, उसकी रक्षा की। उसका गर्भस्थ शिशु भी सद्शिक्षा से शिक्षित हो गया। आज उस महान शिशु को हम भक्त प्रहलाद के नाम से जानते हैं जिसने नारद जी की शिक्षा से सत्य एवं धर्म का पालन किया।
उक्त घटना से प्रतीत होता है कि नारद जी ने इंद्र के गलत कार्य का भी विरोध किया और दानव पत्नी के गर्भस्थ शिशु की रक्षा कर उसको सद्शिक्षा से ईश्वर व सत्य का अनुगामी बना दिया।
नारद जी के चरित्र से यह प्रकट होता है कि आस्तिकता के समक्ष नास्तिकता टिक नहीं पाती। समय की यही पुकार है कि सत्य की असत्य पर विजय प्राप्त हो। यही नारद जी का शुभ संदेश है।
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