धर्म-अध्यात्म

वीर अंगद ने रावण को उसके कितने स्वरूपों के बारे में जानकारी दी थी

Manish Sahu
5 Oct 2023 6:20 PM GMT
वीर अंगद ने रावण को उसके कितने स्वरूपों के बारे में जानकारी दी थी
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धर्म अध्यात्म: रावण अपनी सभा में, वीर अंगद को ऐसे-ऐसे साधनों से परास्त करना चाहता है, कि उससे वीर अंगद परास्त तो नहीं होते, अपितु रावण अपने अपमान हेतु स्वयं ही मार्ग अवश्य खोज ले रहा है। वह वीर अंगद को बार-बार कोई न कोई ऐसी बात कह ही देता है, कि वीर अंगद फिर से उस पर हावी हो जाते हैं। रावण को भला यह कहने की क्या आवश्यक्ता थी, कि वीर अंगद अपने पिता को ही खा गए। फिर क्या था, रावण को मुँह की खानी पड़ी न? वीर अंगद इस बात से मानों चिढ़ से गए। और एक बहुत ही चुभने वाला व्यंग्य कस दिया। वीर अंगद बोले, कि मुझे तो यह समझ नहीं आ रहा, कि तू कौन-सा रावण है? कारण कि मैंने जगत में कई रावणों के बारे में सुना है। अब तुम बताओ, कि तुम कौन से रावण हो-
‘बलिहि जितन एक गयउ पताला।
राखेउ बाँधि सिसुन्ह हयसाला।।
खेलहिं बालक मारहिं जाई।
दया लागि बलि दीन्ह छोड़ाई।।’
वीर अंगद ने कहा कि हे रावण! एक रावण की चर्चा तो मैंने ऐसा सुना है, जो कि बलि को जीतने पाताल लोक में गया। उसने सोचा, कि वहाँ खूब धूम धड़ाका करूँगा। लेकिन वहाँ हुआ क्या, कि वहाँ के छोटे-छोटे बच्चों ने ही उस रावण को पकड़ लिया। वे तो उसके साथ खेलने ही लग पड़े। वे उसके साथ खेलते भी थे, और उसे बार-बार मारते भी थे। वो तो भला हो राजा बलि का। कारण कि उस रावण की ऐसी दुर्दशा देख कर, उनको रावण पर दया-सी आ गई। और उन्होंने जाकर रावण को छुड़ाया।
वीर अंगद रावण को उसके बल का वास्तविक अक्स दिखाना चाह रहे थे, कि जो रावण कुछ नन्हें बच्चों से नहीं जीत पाया, वह भला क्या किसी को अपने बल की महिमा सुनाने का पात्र हो सकता है। वीर अंगद कहना चाह रहे हैं, कि हैं तो हम भी किसी के हाथ के खिलौने ही। लेकिन हमसे खेलने वाला कोई और नहीं, अपितु साक्षात ‘श्रीहरि’ जी हैं। भगवाना के हाथ के खिलौने बनेंगे, तो संसार में कोई भी हमारे साथ नहीं खेल सकेगा। लेकिन संसार के हाथ के खिलौने बनेंगे, तो कुछ नन्हें बच्चे भी हमें कहीं का नहीं छोड़ेंगे। इसलिए हे रावण! तू तो हमें यह बता, कि तू किसके हाथ का खिलौना बनना चाह रहा है।
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चलो यह तो पहला रावण था, जिसकी मैंने चर्चा की। अब दूसरे रावण का कथन तुमसे कहता हूँ-
‘एक बहोरि सहसभुज देखा।
धाइ धरा जिमि जंतु बिसेषा।।
कौतुक लागि भवन लै आवा।
सो पुलस्ति मुनि जाइ छोड़ावा।।’
एक रावण वह था, जो सहस्त्रबाहू की दृष्टि में आ चढ़ा था। वह उसे पकड़ अपने घर ले गया था। घर उसे इसलिए नहीं ले गया, कि वह रावण काई बहुत विशेष था। बल्कि इसलिए ले गया, क्योंकि वह वाला रावण, सहस्=सबाहू को एक विचित्र-सा प्राणी लगा। सहस्त्रबाहू ने सोचा, कि अपने नगर में तमाशे के लिए इस विचित्र को रखना अच्छा रहेगा। यह तो भला हो उस वाले रावण के दादा मुनि पुलस्तय का। जिन्होंने जाकर उसे छुड़ाया।
वीर अंगद कहना चाह रहे हैं, कि हे रावण संसार में तुम एक तमाशे वाली वस्तु से अधिक कुछ नहीं हो। मानो तुम्हारी एक जोकर से ज्यादा हैसियत नहीं है। एक जोकर का अधिक से अधिक कार्य क्या होता है, लोगों को हँसाना न? तो वह तो तुम बहुत अच्छे से कर रहे हो। कभी तुम्हें पाताल लोक के बच्चे मुसल से बाँध कर खेलने लगते हैं, तो कभी तुम्हें कोई विचित्र जीव समझ कर उठा लिया जाता है।
अब अगले वाले रावण की व्याख्या करने में तो मुझे बड़ा संकोच हो रहा है। कारण कि वह बहुत दिनों तक बालि का काँख में रहा था। काँख में कीटाणु रहा करते हैं। और काँख वाले कीटाणुओं को तो कोई भी सम्मान वाली दृष्टि से नहीं देखता। मुझे पता है, कि तुम्हें बहुत खीझ आ रही है। लेकिन खीझना छोड़ो, और मुझे सच-सच बतोओ, कि तुम कौन-से रावण हो?
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