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Vat Savitri Vrat: वट सावित्री के कथा और आरती जानें

Apurva Srivastav
5 Jun 2024 6:43 PM GMT
Vat Savitri Vrat: वट सावित्री के कथा और आरती जानें
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Vat Savitri Vrat : हिंदू धर्म में Vat Savitri Vrat का बहुत महत्व होता है. यह व्रत हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन मनाया जाता है. इस साल वट सावित्री का व्रत 6 जून 2024 को मनाया जाएगा. इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है. इसके साथ ही इस दिन Lord Shiva and Mother Parvati की भी पूजा की जाती है. वट सावित्री के दिन सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रख पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. कहा जाता है कि इस खास दिन पर पूजा-पाठ के बाद आपको ये
आरती और कथा जरूर पढ़नी चाहिए.

वट सावित्री व्रत कथा (Vat Savitri Vrat Katha)
सावित्री, अश्वपति नामक राजा की पुत्री थीं. वह अपनी सुंदरता और गुणों के लिए जानी जाती थीं. वह एक पतिव्रता स्त्री बनना चाहती थीं. एक दिन उन्होंने सत्यवान नामक एक गरीब लेकिन सत्यवादी युवक को देखा और उसे पसंद कर लिया. उनके पिता इस विवाह के खिलाफ थे, लेकिन सावित्री अपने निर्णय पर अडिग रहीं और उन्होंने सत्यवान से विवाह कर लिया. विवाह के कुछ वर्षों बाद सत्यवान की मृत्यु हो जाती है. इससे सावित्री दुखी हो जाती हैं और वह अपने पति को बचाने का निर्णय करती हैं. वह यमलोक जाती हैं और यमराज से अपने पति की जान वापस मांगती हैं. यमराज उनकी पतिव्रता और निष्ठा से प्रभावित होते हैं और उन्हें एक वर दान देते हैं.
सावित्री अपने पति के अलावा और कुछ नहीं मांगती हैं. यमराज उन्हें दूसरा वर चुनने के लिए कहते हैं, लेकिन सावित्री फिर भी अपने पति की जान ही मांगती हैं. अंत में यमराज सत्यवान को जीवन दान देकर सावित्री की पतिव्रता का सम्मान करते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सावित्री ने अपने पति को वटवृक्ष के नीचे पुन: जीवित किया था और तभी से वट सावित्री का व्रत रखा जाने लगा. सावित्री और सत्यवान धरती पर वापस आते हैं और खुशहाल जीवन जीते हैं. इस प्रकार, सावित्री अपनी पतिव्रता और प्रेम के बल पर अपने पति की जान बचाने में सफल होती हैं.
वट सावित्री व्रत की आरती (Vat Savitri Vrat Aarti)
अश्वपती पुसता झाला।। नारद सागंताती तयाला।।
अल्पायुषी स त्यवंत।। सावित्री ने कां प्रणीला।।
आणखी वर वरी बाळे।।मनी निश्चय जो केला।।
आरती वडराजा।।
दयावंत यमदूजा। सत्यवंत ही सावित्री।
भावे करीन मी पूजा। आरती वडराजा ।।
ज्येष्ठमास त्रयोदशी। करिती पूजन वडाशी ।।
त्रिरात व्रत करूनीया। जिंकी तू सत्यवंताशी।
आरती वडराजा ।।
स्वर्गावारी जाऊनिया। अग्निखांब कचळीला।।
धर्मराजा उचकला। हत्या घालिल जीवाला।येश्र गे पतिव्रते। पती नेई गे आपुला।।
आरती वडराजा ।।
जाऊनिया यमापाशी। मागतसे आपुला पती।
चारी वर देऊनिया। दयावंता द्यावा पती।
आरती वडराजा ।।
पतिव्रते तुझी कीर्ती। ऐकुनि ज्या नारी।।
तुझे व्रत आचरती। तुझी भुवने पावती।।
आरती वडराजा ।।
पतिव्रते तुझी स्तुती। त्रिभुवनी ज्या करिती।।
स्वर्गी पुष्पवृष्टी करूनिया। आणिलासी आपुला पती।।
अभय देऊनिया। पतिव्रते तारी त्यासी।।
आरती वडराजा ।।
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