धर्म-अध्यात्म

Vat Savitri Vrat katha : सोमवार को है वट सावित्री का व्रत, जानें पूजा विधि और महत्व

Tulsi Rao
28 May 2022 11:27 AM GMT
Vat Savitri Vrat katha : सोमवार को है वट सावित्री का व्रत, जानें पूजा विधि और महत्व
x

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Vat Savitri Vrat Katha 2022: वट सावित्री का व्रत सोमवार, 30 मई 2022 को किया जाएगा। इसे वट सावित्री अमावस्या पूजा के नाम से भी जानते हैं। यह व्रत जेष्ठ माह अमावस्या को मनाया जाता है। वट सावित्री का व्रत पौराणिक कथा में वर्णित सत्यवान और सावित्री को समर्पित है। महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत रखती हैं। आचार्य शुक्ल ने बताया कि 29 मई को अमावस्या तिथि दोपहर करीब तीन बजे से शुरू हो जाएगी। 30 मई को शाम पांच बजे तक रहेगी। बताया कि पंचांगों के अनुसार सांयकालीन अमावस्या में व्रत करने का निर्देश है। ऐसे में 29 मई को ही व्रत रखना शास्त्रोचित होगा। हालांकि अमावस्या तिथि की पूजा 30 मई यानी सोमवार को ही की जाएगी। तीस साल बाद सर्वार्थ सिद्धि योग में सोमवती अमावस्या का संयोग बन रहा है। वट सावित्री अमावस्या को वट वृक्ष की पूजा की जाती है, लेकिन सोमवती अमावस्या होने के कारण इस बार पीपल के पेड़ का भी पूजन किया जाएगा। महिलाएं पीपल पर श्रृंगार सामग्री अर्पण करते हुए कच्चा सूत लपेटते हुए 108 परिक्रमा करने से अखंड सौभाग्य और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। वट सावित्री पूजा के दौरान कथा पढ़ने या सुनने का भी महत्व है। आगे देखिए वट सावित्री व्रत की पूरी कथा-

अमावस्या तिथि :
अमावस्या तिथि प्रारम्भ - मई 29, 2022 को 02:54PM
अमावस्या तिथि समाप्त - मई 30, 2022 को 04:59PM
वट सावित्री अमावस्या पूजा- विधि:
इस पावन दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
इस पावन दिन वट वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व होता है।
वट वृक्ष के नीचे सावित्रि और सत्यवान की मूर्ति को रखें।
इसके बाद मूर्ति और वृक्ष पर जल अर्पित करें।
इसके बाद सभी पूजन सामग्री अर्पित करें।
लाल कलावा को वृक्ष में सात बार परिक्रमा करते हुए बांध दें।
इस दिन व्रत कथा भी सुनें।
इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।
वट सावित्री व्रत की कथा:
राजर्षि अश्वपति की एक संतान थी, जिसका नाम सावित्री था। सावित्री का विवाह अश्वपति के पुत्र सत्यवान से हुआ था। नारद जी ने अश्वपति को सत्यवान के गुण और धर्मात्मा होने के बारे में बताया था। लेकिन उन्हें यह भी बताया था कि सत्यवान की मृत्यु विवाह 1 साल बाद ही मृत्यु हो जाएगी। पिता ने सावित्री को काफी समझाया लेकिन उन्होंने कहा कि वह सिर्फ़ सत्यवान से ही विवाह करेंगी और किसी से नहीं। सत्यवान अपने माता-पिता के साथ वन में रहते थे। विवाह के बाद सावित्री भी उनके साथ में रहने लगीं। सत्यवान की मृत्यु का समय पहले ही बता दिया था इसलिए सावित्री पहले से ही उपवास करने लगी। जब सत्यवान की मृत्यु का दिन आया तो वह लकड़ी काटने के लिए जंगल में जाने लगा। सावित्री ने कहा कि आपके साथ जंगल में मैं भी जाऊंगी। जंगल में जैसे ही सत्यवान पेड़ पर चढ़ने लगा तो उनके सिर पर तेज दर्द हुआ और वह वृक्ष से आकर नीचे सावित्री की गोद में सिर रख कर लेट गए। कुछ समय बाद सावित्री ने देखा कि यमराज के दूत सत्यवान को लेने आए हैं। सावित्री पीछे पीछे यमराज के चलने लगी। जब यमराज ने देखा कि उनके पीछे कोई आ रहा है तो उन्होंने सावित्री को रोका और कहा कि तुम्हारा साथ सत्यवान तक धरती पर था अब सत्यवान को अपना सफर अकेले तय करना है। सावित्री ने कहा मेरा पति जहां जाएगा मैं वही उनके पीछे जाऊंगी, यही धर्म है। यमराज सावित्री के पतिव्रता धर्म से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने एक वरदान मांगने को कहा। सावित्री ने अपने सास-ससुर की आंखों की रोशनी मांगी। यमराज ने वर देकर आगे बढ़े। फिर से सावित्री पीछे आ गई है। फिर एक और वरदान मांगने को कहा तब सावित्री ने कहा, "मैं चाहती हूं मेरे ससुर का खोया हुआ राजपाट वापस मिल जाए। यह वरदान देकर यमराज आगे बढ़े। इसके बाद फिर वे सावित्री पीछे चल पड़ीं। तब यमराज ने सावित्री को एक और वर मांगने के लिए कहां तब उन्होंने कहा कि मुझे सत्यवान के 100 पुत्रों का वर दें। यमराज ने यह वरदान देकर सत्यवान के प्राण लौटा दिए। सावित्री लौटकर वृक्ष के पास आई और देखा कि सत्यवान जीवित हो गए हैं। ऐसे में इस दिन पति की लंबी आयु, सुख, शांति, वैभव, यश, ऐश्वर्य के लिए यह व्रत रखना चाहिए।


Next Story