धर्म-अध्यात्म

Valmiki Jayanti 2021: 20 अक्टूबर को वाल्मीकि जयंती, जानें महाकाव्य रामायण की रचना की कहानी

Kunti Dhruw
18 Oct 2021 3:55 PM GMT
Valmiki Jayanti 2021: 20 अक्टूबर को वाल्मीकि जयंती, जानें महाकाव्य रामायण की रचना की कहानी
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हर वर्ष आश्विन माह की पूर्णिमा को महर्षि वाल्मीकि का जन्मदिन मनाया जाता है.

हर वर्ष आश्विन माह की पूर्णिमा को महर्षि वाल्मीकि का जन्मदिन मनाया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महर्षि वाल्मीकि ने ही रामायण (Ramayan) की रचना की थी. ऐसे में इस वर्ष 20 अक्टूबर (बुधवार) को वाल्मीकि जयंती मनाई जाएगी. संस्‍कृत भाषा के परम ज्ञानी महर्षि वाल्‍मीकि का जन्म देश के कई राज्यों में धूमधाम से मनाया जाता है. माना जाता है कि वाल्‍मीकि पहले एक डाकू थे, उनका नाम रत्नाकर था लेकिन जीवन में एक ऐसा मोड़ आया जब नारद मुनि की बात सुनकर उनका हृदय परिवर्तन हो गया और उन्होंने अनैतिक कार्यों को छोड़ प्रभु का मार्ग चुना. इसके बाद वह महर्षि वाल्मीकि के नाम से विख्यात हुए.

महर्षि वाल्‍मीकि का बचपन
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महर्षि वाल्मीकि का वास्तविक नाम रत्नाकर था. उनके पिता सृष्टि के रचियता परमपिता ब्रह्मा के मानस पुत्र थे. लेकिन जब रत्नाकर बहुत छोटे थे तभी एक भीलनी ने इन्हें चुरा लिया था. ऐसे में इनका लालन पालन भी भील समाज में ही हुआ. भील राहगीरों को लूटने का काम करते थे.वाल्मीकि ने भी भीलों का ही रास्ता और काम-धंधा अपनाया.
डाकू से महर्षि वाल्मीकि बनने का सफर
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार नारद मुनि जंगल के रास्ते जाते हुए डाकू रत्नाकर के चंगुल में आ गये. बंदी नारद मुनि ने रत्नाकर से सवाल किया कि क्या तुम्हारे घरवाले भी तुम्हारे बुरे कर्मों के साझेदार बनेंगे. रत्नाकर ने अपने घरवालों के पास जाकर नारद मुनि का सवाल दोहराया. जिस पर उन्होंने स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया. डाकू रत्नाकर को इस बात से काफी झटका लगा और उसका ह्रदय परिवर्तन हो गया. साथ ही उसमें अपने जैविक पिता के संस्कार जाग गए. रत्नाकर ने नारद मुनि से मुक्ति का रास्ता पूछा.
राम नाम का जाप
नारद मुनि ने रत्नाकर को राम नाम का जाप करने की सलाह दी. लेकिन रत्नाकर के मुंह से राम की जगह मरा मरा निकल रहा था. इसकी वजह उनके पूर्व कर्म थे. नारद ने उन्हें यही दोहराते रहने को कहा और कहा कि तुम्हें इसी में राम मिल जाएंगे. 'मरा-मरा' का जाप करते करते कब रत्नाकर डाकू तपस्या में लीन हो गया उसे खुद भी ज्ञात नहीं रहा. तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें 'वाल्मीकि' नाम दिया और साथ ही रामायण की रचना करने को कहा.
रामायण की रचना की कहानी
महर्षि वाल्मीकि ने नदी के तट पर क्रोंच पक्षियों के जोड़े को प्रणय क्रीड़ा करते हुए देखा लेकिन तभी अचानक उसे शिकारी का तीर लग गया. इससे कुपित होकर वाल्मीकि के मुंह से निकला, 'मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः .यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम्. ' अर्थात प्रेम क्रीड़ा में लिप्त क्रोंच पक्षी की हत्या करने वाले शिकारी को कभी सुकून नहीं मिलेगा. हालांकि, बाद में उन्हें अपने इस श्राप को लेकर दुख हुआ. लेकिन नारद मुनि ने उन्हें सलाह दी कि आप इसी श्लोक से रामायण की रचना करें.


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