धर्म-अध्यात्म

अल्लाह की मेहरबानी पाने के लिए बहुत खास है छब्बीसवां रोजा

Apurva Srivastav
7 May 2021 2:48 PM GMT
अल्लाह की मेहरबानी पाने के लिए बहुत खास है छब्बीसवां रोजा
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जिस दिन छब्बीसवां रोजा होता है, उस तारीख़ को माहे-रमजान की सत्ताईसवीं रात होती है।

जिस दिन छब्बीसवां रोजा होता है, उस तारीख़ को माहे-रमजान की सत्ताईसवीं रात होती है। इस रात को ही अमूमन शबे-कद्र (अल्लाह की मेहरबानी की खास रात) शुमार किया जाता है।

हालांकि हदीसे-नबवी में जिक्र है कि शबे-कद्र को रमजान के आखिरी अशरे (अंतिम कालखंड) की ताक रातों (विषम संख्या वाली रातें) जैसे 21वीं, 23वीं, 25वीं, 27वीं, 29वीं रात में तलाश करो, लेकिन हजरत उमर और हजरत हुजैफा (रजियल्लाहु अन्हुम) और असहाबे-रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) में से बहुत से लोगों को यकीन था कि रमजान की सत्ताईसवीं रात ही शबे-कद्र है।
सवाल यह उठता है कि शबे-कद्र क्या है? शब के मा'नी है रात, कद्र के मा'नी है इज्जत। शबे-कद्र यानी ऐसी शब (रात) जो कद्र (इज्जत, सम्मान) वाली है। माहे-रमजान के आखिरी अशरे में ही शबे-कद्र यानी इज्जत और अजमत वाली ये रात आती है।
अब दूसरा सवाल यह पेश आता है कि शबे-कद्र की ऐसी क्या ख़ासियत है कि इसे इतनी अहमियत हासिल है? इसका जवाब यह कि जिस तरह नदियों में कोई नदी बहुत खास होती है, पहाड़ों में कोई पहाड़ बहुत खास होता है, परिंदों (पक्षियों) में कोई परिंदा बहुत खास होता है, दरख्तों (वृक्ष) में कोई दरख्त बहुत खास होता है, दिनों में कोई दिन बहुत खास होता है वैसे ही रातों में कोई रात बहुत खास होती है।
रमजान के माह में शबे-कद्र ऐसी ही खास और मुकद्दस (पवित्र) रात है जिसमें अल्लाह ने हजरत मोहम्मद (सल्ल.) के जरिए से कुरआने-पाक की सौग़ात दी। मजहबे-इस्लाम की पाकीजा किताब-कुरआने-पाक दरअसल तमाम दुनिया और इंसानियत के लिए रहनुमाई, रौनक और रहमत की रोशनी तो है ही, समाजी जिंदगी का पाकीजा आईन (विधान) भी है।
कुरआने-पाक के तीसवें पारे (अध्याय-30) की सूरह 'कद्र' की पहली आयत में जिक्र है 'इन्ना अन्जल्नाहु फ़ी लैलतिल कद्र' यानी 'यकीनन हमने इसे (कुरआन को) शबे-कद्र में नाजिल किया। शबे-कद्र हजार महीनों से ज्यादा बेहतर है। शबे-कद्र में सच्चे दिल से इबादत करने से मिलती है अल्लाह की रहमत और इनायत।


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