धर्म-अध्यात्म

मंगलवार को हनुमान चालीसा का पाठ करने से दूर होते हैं संकट

Subhi
6 Oct 2020 1:08 AM GMT
मंगलवार को हनुमान चालीसा का पाठ करने से दूर होते हैं संकट
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मंगलवार को हनुमान चालीसा का पाठ करने से दूर होते हैं संकट

हनुमान जी को मंगलवार का दिन बहुत प्रिय है. हनुमान जी को संकट मोचक कहा जाता है. जो व्यक्ति नित्य हनुमान जी की पूजा करता है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | हनुमान जी को मंगलवार का दिन बहुत प्रिय है. हनुमान जी को संकट मोचक कहा जाता है. जो व्यक्ति नित्य हनुमान जी की पूजा करता है और प्रत्येक मंगलवार को विधि पूर्वक हनुमान चालीसा का पाठ करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. राम भक्त हनुमान की महिमा अद्भूत है. सच्चे मन से जो भी हनुमान जी की पूजा करता है उन्हें याद करता है उस वे सदैव अपना आर्शीवाद बनाए रखते हैं.

अभिजीत मुहूर्त करें हनुमान जी की पूजा

पंचांग के अनुसार 6 अक्टूबर को आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि है. इस दिन कृतिका नक्षत्र है और सिद्धि योग बना हुआ है. इस दिन अभिजीत मुहूर्त भी है. ऐसी मान्यता है कि अभिजीत मुहूर्त में किए गए कार्यों का फल अभिजीत प्राप्त होगा. ये एक शुभ मुहूर्त है. इस दिन प्रात: 11बजकर 45 मिन 24 सेकेंड से 12 बजकर 32 मिनट 19 सेकेंड तक अभिजीत मुहूर्त है.

हनुमान चालीसा का पाठ करने की जानें विधि

हनुमान जी नियमों को मानने वाले देवता हैं. इसलिए हनुमान जी की पूजा में नियमों का विशेष ध्यान रखना चाहिए. मंगलवार को हनुमान चालीसा का पाठ करने से पूर्व स्नान करें और पूजा स्थल पर आसान बिछा कर बैठ जाएं. मंगलवार के दिन हनुमान चालीसा एक से तीन बार करना शुभ माना जाता है. पाठ करने से पहले सामने जल भर कर रखें और चालीसा पूरा होने पर उस जल को प्रसाद की तरह ग्रहण करना चाहिए.

हनुमान चालीसा

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।

रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।

कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा।।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। कांधे मूंज जनेऊ साजै।

संकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बन्दन।।

विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।।

भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्र के काज संवारे।।

लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा।।

जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेस्वर भए सब जग जाना।।

जुग सहस्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।

दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।

सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डर ना।।

आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै।।

भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।

नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा।।

संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा।

और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै।।

चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।।

साधु-संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे।।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।

राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।

तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम-जनम के दुख बिसरावै।।

अन्तकाल रघुबर पुर जाई। जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।

और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।

संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

जै जै जै हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।

जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई।।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।।

तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।

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