धर्म-अध्यात्म

दूर होंगे संकट आज करें इस मंत्र का जाप

Tara Tandi
25 April 2023 7:13 AM GMT
दूर होंगे संकट आज करें इस मंत्र का जाप
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हर कोई अपने जीवन में सुख शांति चाहता है इसके लिए लोग प्रयास भी करते हैं लेकिन फिर भी अगर संकट आपके जीवन में बना हुआ है और इससे पीछा छुड़ाने का कोई मार्ग नजर नहीं आ रहा है। तो ऐसे में आप हर मंगलवार के दिन हनुमान मंदिर जाए और हनुमान प्रतिमा के समक्ष घी का दीपक जलाकर विधिवत हनुमान साठिका का पाठ करें। ऐसा लगातार सात मंगलवार तक करने से साधक को सभी संकटों से मुक्ति मिल जाएगी और जीवन में सुख शांति व समृद्धि बनी रहेगी।

हनुमान साठिका—
॥ दोहा ॥
बीर बखानौं पवनसुत,जनत सकल जहान ।
धन्य-धन्य अंजनि-तनय , संकर, हर, हनुमान ॥
॥ चौपाइयां ॥
जय जय जय हनुमान अडंगी। महावीर विक्रम बजरंगी ॥
जय कपीश जय पवन कुमारा। जय जगबन्दन सील अगारा ॥
जय आदित्य अमर अबिकारी। अरि मरदन जय-जय गिरधारी ॥
अंजनि उदर जन्म तुम लीन्हा। जय-जयकार देवतन कीन्हा ॥
बाजे दुन्दुभि गगन गम्भीरा। सुर मन हर्ष असुर मन पीरा ॥
कपि के डर गढ़ लंक सकानी। छूटे बंध देवतन जानी ॥
ऋषि समूह निकट चलि आये। पवन तनय के पद सिर नाये ॥
बार-बार अस्तुति करि नाना। निर्मल नाम धरा हनुमाना ॥
सकल ऋषि मिलि अस मत ठाना। दीन्ह बताय लाल फल खाना ॥
सुनत बचन कपि मन हर्षाना। रवि रथ उदय लाल फल जाना ॥
रथ समेत कपि कीन्ह अहारा। सूर्य बिना भए अति अंधियारा ॥
विनय तुम्हार करै अकुलाना। तब कपीस कै अस्तुति ठाना ॥
सकल लोक वृतान्त सुनावा। चतुरानन तब रवि उगिलावा ॥
कहा बहोरि सुनहु बलसीला। रामचन्द्र करिहैं बहु लीला ॥
तब तुम उन्हकर करेहू सहाई। अबहिं बसहु कानन में जाई ॥
असकहि विधि निजलोक सिधारा। मिले सखा संग पवन कुमारा ॥
खेलैं खेल महा तरु तोरैं। ढेर करैं बहु पर्वत फोरैं ॥
जेहि गिरि चरण देहि कपि धाई। गिरि समेत पातालहिं जाई ॥
कपि सुग्रीव बालि की त्रासा। निरखति रहे राम मगु आसा ॥
मिले राम तहं पवन कुमारा। अति आनन्द सप्रेम दुलारा ॥
मनि मुंदरी रघुपति सों पाई। सीता खोज चले सिरु नाई ॥
सतयोजन जलनिधि विस्तारा। अगम अपार देवतन हारा ॥
जिमि सर गोखुर सरिस कपीसा। लांघि गये कपि कहि जगदीशा ॥
सीता चरण सीस तिन्ह नाये। अजर अमर के आसिस पाये ॥
रहे दनुज उपवन रखवारी। एक से एक महाभट भारी ॥
तिन्हैं मारि पुनि कहेउ कपीसा। दहेउ लंक कोप्यो भुज बीसा ॥
सिया बोध दै पुनि फिर आये। रामचन्द्र के पद सिर नाये।
मेरु उपारि आप छिन माहीं। बांधे सेतु निमिष इक मांहीं ॥


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