धर्म-अध्यात्म

कल है षटतिला एकादशी व्रत, जानिए पूजा विधि और महत्व

Subhi
27 Jan 2022 2:04 AM GMT
कल है षटतिला एकादशी व्रत, जानिए पूजा विधि और महत्व
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स्नान, दान कर पुण्य अर्जित करने के लिए माघ का महीना बहुत ही उत्तम माना गया है। यह पवित्र महीना देवी-देवताओं के निमित्त पूजा-पाठ के लिए सर्वश्रेष्ठ है। इसलिए इस माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली षटतिला एकादशी का महत्व और भी बढ़ जाता है।

स्नान, दान कर पुण्य अर्जित करने के लिए माघ का महीना बहुत ही उत्तम माना गया है। यह पवित्र महीना देवी-देवताओं के निमित्त पूजा-पाठ के लिए सर्वश्रेष्ठ है। इसलिए इस माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली षटतिला एकादशी का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस साल यह एकादशी 28 जनवरी, शुक्रवार को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान विष्णु के निमित्त व्रत-पूजा एवं तिल दान करने से मनुष्य को सभी सुखों की प्राप्ति होती है।

षटतिला एकादशी का महत्व

पदमपुराण के अनुसार श्री कृष्ण, युधिष्ठिर को इस एकादशी की महिमा बताते हुए कहते हैं कि हे नृपश्रेष्ठ!माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी 'षटतिला' या 'पापहारिणी'के नाम से विख्यात है,जो समस्त पापों का नाश करती है। जितना पुण्य कन्यादान, हजारों वर्षों की तपस्या और स्वर्ण दान से मिलता है, उससे अधिक फल प्राणी को षटतिला एकादशी का व्रत करने से मिलता है। यह व्रत परिवार के विकास में सहायक होता है और मृत्यु के बाद व्रती को विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।

पूजाविधि

जल में तिल और गंगाजल की कुछ बूंदें डालकर स्नान करके पवित्र होकर शुद्धभाव से देवाधिदेव श्री नारायण का स्मरण करें। रोली,मोली,पीले चन्दन,अक्षत,पीले पुष्प,ऋतुफल,मिष्ठान आदि अर्पित कर धूप-दीप से श्री हरि की आरती उतारकर दीप दान करना चाहिए। इस दिन 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ' का जप एवं विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना बहुत फलदायी है। तत्पश्चात श्री कृष्ण नाम का उच्चारण करते हुए भगवान को विधिपूर्वक पूजकर अर्घ्य प्रदान करें।

अर्ध्य का मंत्र-

कृष्ण कृष्ण कृपालुस्त्वमगतीनां गतिर्भव।

संसारार्णवमग्नानां प्रसीद पुरुषोत्तम ॥

नमस्ते पुण्डरीकाक्ष नमस्ते विश्वभावन ।

सुब्रह्मण्य नमस्तेSस्तु महापुरुष पूर्वज ॥

गृहाणार्ध्यं मया दत्तं लक्ष्म्या सह जगत्पते ।

अर्थात 'सच्चिदानन्दस्वरुप श्रीकृष्ण ! आप बड़े दयालु हैं । हम आश्रयहीन जीवों के आप आश्रयदाता होइये । हम संसार समुद्र में डूब रहे हैं, आप हम पर प्रसन्न होइये । कमलनयन ! विश्वभावन ! सुब्रह्मण्य ! महापुरुष ! सबके पूर्वज ! आपको नमस्कार है ! जगत्पते ! मेरा दिया हुआ अर्ध्य आप लक्ष्मीजी के साथ स्वीकार करें '।

इस दिन तिल दान का महत्व-

मत्स्य पुराण के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु के पसीने से उत्पन्न तिल और माता लक्ष्मी के द्वारा प्रकट किए गन्ने के रस से बने गुड के मिष्ठान बनाकर उसे दान करना चाहिए। अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मण को जल का घड़ा, छाता, जूता और गर्मवस्त्र दान करें । दान करते समय ऐसा कहें- 'इस दान के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण मुझ पर प्रसन्न हों ।'तिल से बने हुए व्यंजन या तिल से भरा हुआ पात्र दान करने से अंनत पुण्यों की प्राप्ति होती है।शस्त्रों के अनुसार उन तिलों के बोने पर उनसे जितनी शाखाएं पैदा होती हैं, उतने हजार वर्षों तक दान करने वाला व्यक्ति स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है ।इस दिन तिल से स्नान,तिल से होम करे, तिल का उबटन लगाये, तिल मिलाया हुआ जल पीये, तिल का दान करे और तिल को भोजन के काम में ले ।इस प्रकार से छ: कामों में तिल का उपयोग करने के कारण यह एकादशी 'षटतिला' कहलाती है,जो प्राणी को तीनों ताप यानी दैहिक ताप ,दैविक ताप तथा भौतिक ताप से दूर रखती है।


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