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काल भैरव जयंती हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इस दिन भोलेनाथ के रौद्र रूप काल भैरव का अवतरण हुआ था।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| काल भैरव जयंती हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इस दिन भोलेनाथ के रौद्र रूप काल भैरव का अवतरण हुआ था। इस वर्ष यह जयंती 7 दिसंबर, सोमवार को मनाई जाती है। इसे भैरव अष्टमी और भैरव जयंती के नाम से भी जाना जाता है। हर वर्ष मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को यह जयंती मनाई जाती है। आइए जानते हैं काल भैरव का इतिहास और महत्व:
काल भैरव का इतिहास और महत्व:
शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव ने कृष्ण अष्टमी पर काल भैरव का रूप धारण किया था। उन्हें काशी के निर्देशों और संरक्षण का रक्षक माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति के शत्रु दूर हो जाते हैं। कथाओं के अनुसार, एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश जैसे राजाओं ने यह पता लगाने के लिए युद्ध लड़ा कि सबसे अच्छा यानी सबसे सर्वश्रेष्ठ कौन है। सभी देवताओं को बुलाया गया जिससे यह चुना जा सके कि सबसे सर्वश्रेष्ठ कौन है। इस दौरान भगवान ब्रह्मा ने भगवान शिव को अपशब्द कहे जिससे उन्होंने अपना रौद्र रुप काल भैरव धारण किया।
क्रोध में उन्होंने ब्रह्मा जी का पांचवां सिर काट दिया। ब्रह्माजी का कटा हुआ सिर काल भैरव के हाथ से चिपक गया। ऐसे में काल भैरव को ब्रह्म हत्या से मुक्ति दिलाने के लिए शिव शंकर ने उन्हें प्रायश्चित करने के लिए कहा। भोलेनाथ ने कहा कि उन्हें त्रिलोक में भ्रमण करना होगा। जैसे ही ब्रह्मा जी का सिर उनके हाथ से छूट जाएगा वैसे ही वो ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हो जाएंगे। त्रिलोक भ्रमण करते समय जब वो काशी पहुंचे तब उनके हाथ से ब्रह्मा जी का सिर छूट गया। इसके बाद काल भैरव काशी में ही स्थापित हो गए और शहर के कोतवाल कहलाए।
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