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- कल है गुरु प्रदोष...
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर माह दो बार प्रदोष व्रत पड़ते हैं जिसमें पहला शुक्ल पक्ष में और दूसरा कृष्ण पक्ष में पड़ता है। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत पड़ रहा है। इस दिन गुरुवार होने के कारण इसे गुरु प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाएगा। प्रदोष व्रत के दौरान भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है। जानिए गुरु प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और मंत्र।
गुरु प्रदोष व्रत मुहूर्त
त्रयोदशी तिथि प्रारंभ: 14 अप्रैल, गुरुवार को सुबह 4 बजकर 49 मिनट से शुरू
त्रयोदशी तिथि समाप्त: 15 अप्रैल, शुक्रवार को सुबह 3 बजकर 55 मिनट में समाप्त
प्रदोष पूजा मुहूर्त: 14 अप्रैल शाम 6 बजकर 46 मिनट से रात 09:00 बजे तक
गुरु प्रदोष व्रत का महत्
मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से व्रती को उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा करने से हर कष्ट से छुटकारा मिलने के साथ सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान शिव के मंत्रों का जाप करने से अकाल मृत्यु से भी बचाव होता है।
गुरु प्रदोष व्रत पूजा विधि
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करके साफ-सूखे वस्त्र धारण कर लें। इसके बाद भगवान शिव का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान शिव की विधिवत तरीके से पूजा करें। भगवान शिव को चंदन, अक्षत, बेलपत्र, भांग, धतूरा, शम्मी के पत्ते के साथ सफेद रंग के फूल, शहद, दूध, गंगाजल आदि चढ़ा दें। इसके बाद कुछ मिठाई का भोग लगाएं और फिर जल अर्पित करें। इसके बाद दीपक, धूप जलाकर भगवान को नमन करते हुए शिव चालीसा और प्रदोष व्रत की कथा का पाठ करें। अंत में आरती कर लें। इसी तरह शाम को भी पूजा आदि कर लें। अगले दिन सुबह स्नान आदि करके भगवान शिव की पूजा करें और अपने व्रत का पारण कर लें। आप चाहे तो ब्राह्मणों और जरूरतमंद को दान दे सकते हैं।