धर्म-अध्यात्म

कल हैं Angarki Sankashti Chaturthi, जानें शुभ मुहूर्त एवं महत्व

Triveni
1 March 2021 2:52 AM GMT
कल हैं Angarki Sankashti Chaturthi, जानें शुभ मुहूर्त एवं महत्व
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हर माह में दो चतुर्थी पड़ती हैं. दोनों चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित होती हैं.

जनता से रिश्ता वेबडेसक | हर माह में दो चतुर्थी पड़ती हैं. दोनों चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित होती हैं. शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी (Vinayak Chaturthi) और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) कहा जाता है. फाल्गुन के महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी कल यानी 2 मार्च को है. मंगलवार के दिन चतुर्थी पड़ने पर इसे अंगारकी चतुर्थी ( Angarki Sankashti Chaturthi 2021) के नाम से जाना जाता है. इसलिए इसे अंगारकी संकष्टी चतुर्थी कहा जाएगा.

इसके अलावा फाल्गुन मास की इस संकष्टी चतुर्थी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी (Dwijapriya Sankashti Chaturthi 2021) भी कहा जाता है. इस दिन गणपति के द्विजप्रिय रूप की आराधना की जाती है. मान्यता है कि विघ्नहर्ता द्विजप्रिय गणेश के चार मस्तक और चार भुजाएं हैं. उनका पूजन और व्रत करने से सभी तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं. साथ ही अच्छी सेहत और सुख समृद्धि प्राप्त होती है.
ये है व्रत व पूजन विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नानादि के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें. इसके बाद भगवान गणेश का स्मरण करें और उनके समक्ष व्रत का संकल्प लें. इसके बाद गणेश की प्रतिमा को जल, रोली, अक्षत, दूर्वा, लड्डू, पान, धूप आदि अर्पित करें. अब केले का एक पत्ता या एक थाली ले लें. इस पर रोली से त्रिकोण बनाएं. त्रिकोण के अग्र भाग पर एक घी का दीपक रखें. बीच में मसूर की दाल व सात लाल साबुत मिर्च रखें. इसके बाद अग्ने सखस्य बोधि नः मंत्र या गणपति के किसी और मंत्र का का कम से कम 108 बार जाप करें. व्रत कथा कहें या सुनें. आरती करें. शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत खोलें.
जानें शुभ मुहूर्त
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ : 2 मार्च 2021 मंगलवार सुबह 05ः46 बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त : 3 मार्च 2021 बुधवार रात 02ः59 बजे
चन्द्रोदय का समय : 09ः41 बजे
व्रत कथा
एक बार माता पार्वती और भगवान शिव नदी के पास बैठे हुए थे तभी अचानक माता पार्वती ने चौपड़ खेलने की अपनी इच्छा ज़ाहिर की. लेकिन समस्या की बात यह थी कि वहां उन दोनों के अलावा तीसरा कोई नहीं था जो खेल में निर्णायक की भूमिका निभाए. इस समस्या का समाधान निकालते हुए शिव और पार्वती ने मिलकर एक मिट्टी की मूर्ति बनाई और उसमें जान डाल दी.
मिट्टी से बने बालक को दोनों ने यह आदेश दिया कि तुम खेल को अच्छी तरह से देखना और यह फैसला लेना कि कौन जीता और कौन हारा. खेल शुरू हुआ जिसमें माता पार्वती बार-बार भगवान शिव को मात दे कर विजयी हो रही थीं. खेल चलते रहा लेकिन एक बार गलती से बालक ने माता पार्वती को हारा हुआ घोषित कर दिया.
बालक की इस गलती ने माता पार्वती को बहुत क्रोधित कर दिया जिसकी वजह से गुस्से में आकर उन्होंने बालक को श्राप दे दिया और वह लंगड़ा हो गया. बालक ने अपनी भूल के लिए माता से बहुत क्षमा मांगी. तब माता ने कहा कि अब श्राप वापस तो नहीं हो सकता लेकिन वे एक उपाय बता सकती हैं जिससे श्राप मुक्ति हो सकती है. माता ने कहा कि संकष्टी वाले दिन इस जगह पर कुछ कन्याएं पूजा करने आती हैं, तुम उनसे व्रत की विधि पूछना और उस व्रत को सच्चे मन से करना.
बालक ने व्रत की विधि को जान कर पूरी श्रद्धापूर्वक और विधि अनुसार उसे किया. उसकी सच्ची आराधना से भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उसकी इच्छा पूछी. बालक ने माता पार्वती और भगवान शिव के पास जाने की अपनी इच्छा को ज़ाहिर किया. गणेश ने उस बालक की मांग को पूरा कर दिया और उसे शिवलोक पंहुचा दिया, लेकिन जब वह पहुंचा तो वहां उसे केवल भगवान शिव ही मिले.
माता पार्वती भगवान शिव से नाराज़ होकर कैलाश छोड़कर चली गयी थीं. जब शिव ने उस बच्चे को पूछा की तुम यहां कैसे आए तो उसने उन्हें बताया कि गणेश की पूजा से उसे यह वरदान प्राप्त हुआ है. ये जानने के बाद भगवान शिव ने भी पार्वती को मनाने के लिए उस व्रत को किया जिसके बाद माता पार्वती भगवान शिव से प्रसन्न हो कर वापस कैलाश वापस लौट आयीं. इस तरह संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने वाले की गणपति सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.


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