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धर्म-अध्यात्म
आप आज इस विधि से करें विश्वकर्मा की पूजा, आपके सभी व्यापार में होगा धन लाभ
Subhi
17 Sep 2021 3:37 AM GMT
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आज पूरे देश में विश्वकर्मा पूजा का उल्लास है। हर वर्ष कन्या संक्रांति के दिन या 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा मनाया जाता है।
आज पूरे देश में विश्वकर्मा पूजा का उल्लास है। हर वर्ष कन्या संक्रांति के दिन या 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा मनाया जाता है। इस दिन देव शिल्पी विश्वकर्मा जी की पूजा विधि विधान से करते हैं। भगवान विश्वकर्मा को संसार का पहला इंजीनियर भी माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इन्होंने सृष्टि की रचना में ब्रह्मा जी की मदद की थी। इन्होंने ही संसार का मानचित्र तैयार किया था। ये वास्तुकला के अद्वितीय गुरु हैं, इसलिए आज के दिन वास्तु दिवस भी मनाया जाता है। विश्वकर्मा पूजा के अवसर पर औजारों, मशीनों, उपकरणों, कलम, दवात आदि की पूजा की जाती है। भगवान विश्वकर्मा की कृपा से ही बिजनेस में तरक्की और उन्नति मिलती है। आइए जानते हैं कि आज भगवान विश्वकर्मा की पूजा किस विधि से करें, ताकि उनकी कृपा प्राप्त हो सके।
विश्वकर्मा पूजा 2021 की सही विधि
आज प्रात: स्नान आदि के बाद अपनी दुकान, कारखाना, वर्कशॉप या कार्यालय की साफ सफाई करें। अब पति-पत्नी विश्वकर्मा पूजा का संकल्प करें। उसके बाद पूजा स्थान पर विश्वकर्मा जी की मूर्ति या तस्वीर की स्थापना करें। कलश स्थापना करें।
अब विश्वकर्मा जी को दही, अक्षत, फूल, धूप, अगरबत्ती, चंदन, रोली, फल, रक्षा सूत्र, सुपारी, मिठाई, वस्त्र आदि अर्पित करें। इसके बाद औजारों, यंत्रों, वाहन, अस्त्र-शस्त्र आदि की भी पूजा करें। पूजा के दौरान नीचे दिए गए मंत्र का जाप करें।
ओम आधार शक्तपे नम:
ओम कूमयि नम:
ओम अनन्तम नम:
पृथिव्यै नम:।
पूजा के बाद विधिपूर्वक हवन करें। फिर पूजा के अंत में भगवान विश्वकर्मा जी की आरती कपूर या घी के दीपक से करें। अब आप भगवान विश्वकर्मा जी को ध्यान करके बिजनेस में तरक्की और उन्नति के लिए आशीर्वाद मांगे। इसके बाद प्रसाद वितरित करें। इस प्रकार भगवान विश्वकर्मा की पूजा संपन्न करें।
भगवान विश्वकर्मा की जन्म कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सृष्टि के प्रारंभ में भगवान विष्णु प्रकट हुए थे, तो वह क्षीर सागर में शेषशय्या पर विराजमान थे। उनकी नाभि से कमल निकला, जिस पर ब्रह्मा जी प्रकट हुए, वे चार मुख वाले थे। उनके पुत्र वास्तुदेव थे, जिनकी पत्नी अंगिरसी थीं। इन्हीं के पुत्र ऋषि विश्वकर्मा थे। विश्वकर्मा जी वास्तुदेव के समान ही वास्तुकला के विद्वान थे। उनको द्वारिकानगरी, इंद्रपुरी, इंद्रप्रस्थ, हस्तिनापुर, सुदामापुरी, स्वर्गलोक, लंकानगरी, शिव का त्रिशूल, पुष्पक विमान, यमराज का कालदंड, विष्णुचक्र समेत कई राजमहल के निर्माण का कार्य मिला था।
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