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आज गुरु पूर्णिमा पर एक साथ हो रहा है शुभ योगों का महासंयोग
पंचांग के अनुसार,आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा का पर्व होता है। आज के दिन अपने गुरुओं की उपासना करना शुभ माना जाता है। शास्त्रों में भी गुरुओं को देवी-देवता से उच्च बताया गया है। आज के दिन गुरुओं के साथ-साथ वेद व्यास जी की भी पूजा करने का विधान है। क्योंकि हिंदू धर्म में गुरु का स्थान देवताओं से ऊंचा रखा गया है इसलिए इनकी भी पूजा देवताओं की तरह की ही की जाती है। इस साल गुरु पूर्णिमा में एक नहीं बल्कि कई शुभ योग बन रहे हैं। इन योगों में गुरु की पूजा करने का विशेष फल मिलेगा। जानिए गुरु पूर्णिमा की तिथि, शुभ मुहूर्त, महासंयोग और गुरु की उपासना करने का तरीका
गुरु पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त
गुरु पूर्णिमा तिथि प्रारंभ- 13 जुलाई को सुबह 4 बजकर 1 मिनट से शुरू
गुरु पूर्णिमा तिथि समाप्त- 14 जुलाई रात 12 बजकर 6 मिनट तक
इंद्र योग- 12 जुलाई शाम 4 बजकर 59 मिनट से 13 जुलाई को दोपहर 12 बजकर 7 मिनट तक
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र - 13 जुलाई सुबह 2 बजकर 21 मिनट से शुरू होकर रात 11 बजकर 18 मिनट तक
गुरु पूर्णिमा पर बन रहा राजयोग
गुरु पूर्णिमा का स्नान-दान का समय: 13 जुलाई को सुबह करीब 4 बजे से शुरू
गुरु पूर्णिमा पर बन रहा पंचमहापुरुष योग
गुरु पूर्णिमा के दिन रूचक, भद्र, हंस, शश और मालव्य योग नाम के पांच विशेष योग बन रहे हैं। इन पांचों शुभ योगों के मिलने से पंचमहापुरुष योग बन रहा है। ज्योतिष गणना के अनुसार, इस साल गुरु पूर्णिमा के दिन ग्रह-नक्षत्रों का खास संयोग बन रहा है। इस दिन मिथुन राशि में गुरु, मंगल, बुध और शनि की युति होने वाली है। जहां सूर्य-बुध की युति से बुधादित्य योग, मंगल के मेष राशि में होने से रुचक योग, गुरु के मीन राशि में होने से केंद्र में हंस योग, बुध के मिथुन में गोचर करने के कारण भद्र योग, शुक्र अपनी राशि में होते हैं ,तो मालव्य .योग, और शनिदेव के मकर राशि में होने के कारण शश योग जैसे शुभ योग बन रहे हैं।
गुरु और चंद्रमा की युति के कारण गुरु पूर्णिमा पर गजकेसरी योग बन रहा है। इस योग में पूजा पाठ करने से सभी कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। इसके साथ ही गुरु पूर्णिमा के दिन रवि योग भी लग रहा है।
गुरु पूर्णिमा को कैसे करें गुरु की उपासना
गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की उपासना करना शुभ माना जाता है। इस दिन गुरु को उच्च स्थान में बैठा के जल से चरणों को धुला जाता है। इसके बाद साफ कपड़े से पैरों को पोंछ दें। इसके बाद पीले या फिर सफेद फूल अर्पित करें। इसके बाद पीले या फिर श्वेत वस्त्र दें। फिर अपनी योग्यता अनुसार भोग लगा दें। इसके बाद गुरु से अपने दायित्व को स्वीकार करने की प्रार्थना करें।