धर्म-अध्यात्म

आज है वट पूर्णिमा व्रत, जानिए मुहूर्त व व्रत कथा

Triveni
24 Jun 2021 1:59 AM GMT
आज है वट पूर्णिमा व्रत, जानिए मुहूर्त व व्रत कथा
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वट पूर्णिमा का पर्व विशेषतौर पर गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा समेत दक्षिण भारत में मनाया जाता है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| वट पूर्णिमा का पर्व विशेषतौर पर गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा समेत दक्षिण भारत में मनाया जाता है। ये त्योहार उत्तर भारत में मनाए जाने वाले वट सावित्री पूजा की तरह ही मनाया जाता है। अंतर ये है कि उत्तर भारत में वट सावित्री का पूजन ज्येष्ठ मास की आमावस्या पर होता है, जबकि दक्षिण और पश्चिम भारत में पूर्णिमा पर मनाया जाता है,इसलिए ही इसे वट पूर्णिमा भी कहते हैं। इस वर्ष वट पूर्णिमा का व्रत आज 24 जून दिन गुरुवार को है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घ आयु की कामना का व्रत रखती हैं और वट वृक्ष का पूजन करती हैं।

वट पूर्णिमा की तिथि, मुहूर्त एवं पूजन विधि
मान्यता के अनुसार, वट पूर्णिमा का व्रत ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को रखा जाता है। इस वर्ष ये तिथि 24 जून को प्रातः 3.32 बजे से प्रारंभ हो कर 25 जून को रात्रि 12.09 बजे समाप्त होगी। वट पूर्णिमा का व्रत 24 जून को रखा जाएगा तथा व्रत का पारण 25 जून को होगा।
वट पूर्णिमा के दिन विवाहित महिलाएं पति की दीर्ध आयु की कामना से व्रत का संकल्प लेती हैं। पीले रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है। वट वृक्ष या बरगद के पेड़ पर सत्यवान, सावित्री तथा यमराज का चित्र लगा कर पूजन करती हैं। मान्यता के अनुसार, सफेद धागे को बरगद के पेड़ पर लपेटते हुये सात फेरे लगाती हैं। इसके बाद हाथ में काले चने लेकर व्रत की कथा सुनती हैं तथा यमराज से घर में सुख,शांति और पति की लम्बी उम्र की कामना करती हैं।
वट पूर्णिमा की व्रत कथा
वट पूर्णिमा के दिन सत्यवान- सावित्री की कथा सुनने का विधान है। कथा के अनुसार, अश्वपति नाम के राजा की पुत्री सावित्री ने नारद जी की भविष्यवाणी जानने के बाद भी अल्प आयु सत्यवान से विवाह किया। विवाह के एक वर्ष बाद अचानक एक दिन सत्यवान लकड़ी काटते-काटते थक कर बरगद के पेड़ के नीचे सोने लगे थे। नींद से न जागने पर सावित्री को नारद जी की भविष्यवाणी याद आयी। सावित्री यमराज द्वारा अपने पति के प्राण ले जाता देख उन्हें खुद को दिए सौ पुत्रों के वरदान की याद दिलाई। सावित्री के कठोर तप और सतीत्व को देख यमराज ने सत्यवान के प्राण लौटा दिए। वट वृक्ष के नीचे ही पुनः जीवित होने कारण इस दिन को वट सावित्री या वट पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं।


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