धर्म-अध्यात्म

आज फाल्गुन माह की द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी है,जानें पूजा विधि ,मुहूर्त और व्रत कथा

Kajal Dubey
20 Feb 2022 2:10 AM GMT
आज फाल्गुन माह की द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी है,जानें पूजा  विधि ,मुहूर्त और व्रत कथा
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आज फाल्गुन माह की संकष्टी चतुर्थी है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आज फाल्गुन माह की संकष्टी चतुर्थी है. इसे द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी (Dwijpriya Sankashti Chaturthi) भी कहा जाता है. आज के दिन भगवान गणेश के

छठें स्वरूप श्री द्विज गणपति की पूजा की जाती है. श्री द्विज गणपति चार भुजाधारी और शुभ्रवर्ण शरीर वाले हैं. उनकी कृपा से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं, मनोकामनाएं पूरी होती हैं, सुख और सौभाग्य में बढ़ोत्तरी होती है. आज की संकष्टी चतुर्थी के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग बना हुआ है, इसलिए यह बहुत ही विशेष है. इस योग में किए गए कार्य सिद्ध एवं सफल होते हैं. आइए जानते हैं संकष्टी चतुर्थी के मुहूर्त (Muhurat), मंत्र (Mantra), पूजा विधि (Puja Vidhi), व्रत कथा (Vrat Katha) आदि के बारे में. ​
संकष्टी चतुर्थी 2022 पूजा मुहूर्त
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, इस साल फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी तिथि 19 फरवरी को रात 09:56 बजे से प्रारंभ हुई थी, इसका समापन आज रात 09:05 बजे हो रहा है. आज संकष्टी चतुर्थी पर सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग प्रात:काल से ही बन रहा है.
आज सुबह 06:55 बजे से लेकर शाम को 04:42 बजे तक सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग बने रहेंगे. आज दिन का शुभ मुहूर्त दोपहर 12:12 बजे से दोपहर 12:58 बजे तक है. आप आज श्री द्विज गणपति की पूजा अमृत सिद्धि योग में कर सकते हैं.
संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि
आज प्रात: स्नान के बाद लाल या पीले वस्त्र पहन लें और हाथ में जल, अक्षत् और फूल लेकर व्रत एवं श्री द्विज गणपति की पूजा का संकल्प करें. उसके बाद गणेश जी की मूर्ति चौकी पर स्थापित करें. फिर गणेश जी को अक्षत्, लाल फूल, सुपारी, पान का पत्ता, लाल चंदन, रोली, जनेऊ, वस्त्र, धूप, दीप, गंध आदि चढ़ाएं.
इन चीजों को अर्पित करते हुए ओम गणेशाय नम: मंत्र का जाप करते रहें. गणेश जी को दूर्वा की 21 गांठ चढ़ाएं और भोग में मोदक या लड्डू अर्पित करें. फिर संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा का पाठ करें. इस दौरान आप गणेश चालीसा भी पढ़ सकते हैं. अंत में गणेश जी की आरती करें.
संकष्टी चतुर्थी पर चंद्रोदय रात 09:50 बजे होगा. तब चंद्रमा का दर्शन कर जल अर्पित करें. उसके बाद ही पारण करके व्रत को पूर्ण करें.
संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा
संकष्टी चतुर्थी की चार व्रत कथाएं हैं. आज हम आपको चतुर्थी की प्रचलित कथा के बारे में बता रहे हैं. पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार सभी देवी-देवता संकटों में घिरे हुए थे, तो वे समाधान के लिए भगवान शिव के पास आए. तब उन्होंने भगवान गणेश और कार्तिकेय से संकट का समाधान करने के लिए कहा, तो दोनों भाइयों ने कहा कि वे इसका समाधान कर सकते हैं.
अब शंकर जी दुविधा में पड़ गए. उन्होंने कहा कि जो भी इस पृथ्वी का चक्कर लगाकर सबसे पहले आएगा, वह देवताओं के संकट के समाधान के लिए जाएगा. भगवान कार्तिकेय का वाहन मोर है, वे उस पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा करने निकल पड़े. गणेश जी की सवारी मूषक है, उसके लिए मोर की तुलना में पहले परिक्रमा कर पाना संभव नहीं था.
गणेश जी बहुत ही चतुर हैं. वे जानते थे कि चूहे पर सवार होकर वह पहले पृथ्वी की परिक्रमा नहीं कर सकते हैं. उन्होंने एक उपाय सोचा. वे अपने स्थान से उठे और दोनों हाथ जोड़कर भगवान शिव और माता पार्वती की 7 बार परिक्रमा की, फिर अपने आसन पर विराजमान हो गए.
उधर भगवान कार्तिकेय जब पृथ्वी की परिक्रमा करके आए, तो उन्होंने स्वयं को विजेता घोषित किया क्योंकि गणेश जी को वे वहां पर बैठे हुए देखे. तब महादेव ने गणेश जी से पूछा कि वे पृथ्वी परिक्रमा क्यों नहीं किए और उनकी परिक्रमा क्यों की?
इस पर गणेश जी ने कहा कि माता-पिता के चरणों में ही पूरा संसार है. इस वजह से उन्होंने अपने माता-पिता की परिक्रमा कर दी. गणेश जी के इस उत्तर से भगवान शिव और माता पार्वती बहु​त प्रसन्न हुए. उन्होंने गणेश जी को देवताओं के संकट दूर करने को भेजा
साथ ही भगवान शिव ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि जो भी चतुर्थी के दिन गणेश पूजन करेगा और चंद्रमा को जल अर्पित करेगा, उसके सभी दुख दूर हो जाएंगे. उसके संकटों का समाधान होगा और पाप का नाश होगा. उसके जीवन में सुख एवं समृद्धि आएगी.

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