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शीतला माता साफ-सफाई,स्वच्छता एवं आरोग्य की देवी हैं, आज कोरोना महामारी काल में इनकी पूजा करना और भी प्रासंगिक हो जाता है।
शीतला माता साफ-सफाई,स्वच्छता एवं आरोग्य की देवी हैं, आज कोरोना महामारी काल में इनकी पूजा करना और भी प्रासंगिक हो जाता है। शीतला माता अपने हाथों में सूप, झाड़ू, नीम के पत्ते और कलश धारण करती हैं, जो कि स्वच्छता और रोग प्रतिरोधकता के प्रतीक हैं। मान्यता है कि शीतला माता की पूजा करने से परिवार को रोग – दोष और बीमारियों से मुक्ति मिलती है। शीतलाष्टमी, जिसे बसौड़ा के नाम से भी जाना जाता है, 02 जुलाई दिन शुक्रवार को है। आइए जानते है शीतलाष्टमी की तिथि, मुहूर्त एवं पूजन विधि...
शीतलाष्टमी की तिथि एवं मुहूर्त
शीतलाष्टमी, हिंदी पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस साल ये तिथि है 02 जुलाई दिन शुक्रवार को पड़ रही है। शीतलाष्टमी को बसौड़ा भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन शीतला माता को बासी भोजन का ही भोग लगाया जाता है। एक दिन पहले घर की साफ-सफाई करके मां के भोग के लिए दही, पुआ, पूड़ी, बाजरा और मीठे चावल बनाए जाते हैं। भोग लगाने के बाद घर के सभी सदस्य बासी भोजन ही करते हैं, मान्यता है कि इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाना चाहिए।
शीतलाष्टमी की पूजन विधि
शीतलाष्टमी के दिन सबेरे उठकर सबसे पहले स्नान आदि दैनिक कर्म से निवृत्त हो जाना चाहिए। शीतलाष्टमी के पूजन में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस दिन नारंगी रंग के कपड़े पहनाना शुभ माना जाता है। मां को भोग लगाने के लिए थाली में दही, पुआ, पूड़ी, बाजरा और मीठे चावल आदि रखने चाहिए। मां को सबसे पहले रोली,अक्षत, मेहंदी और वस्त्र चढ़ाते हैं और ठंडे पानी से भरा लोटा मां को समर्पित करते हैं। शीतला मां को भोग लगाएं और आटे के दीपक से आरती उतारें। पूजा के अंत में नीम के पेड़ पर जल चढ़ाया जाता है। शीतला माता की पूजा से घर में स्वच्छता एवं आरोग्य का वास होता है।
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