धर्म-अध्यात्म

आज है संकष्टी चतुर्थी...जाने शुभ मुहूर्त और विशेष पूजा विधि

Subhi
27 Jun 2021 3:25 AM GMT
आज है संकष्टी चतुर्थी...जाने शुभ मुहूर्त और विशेष पूजा विधि
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आज अषाढ़ महीने की संकष्टी चतुर्थी है. हिंदू धर्म में संकष्ठी चतुर्थी का विशेष महत्व होता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है |

आज अषाढ़ महीने की संकष्टी चतुर्थी है. हिंदू धर्म में संकष्ठी चतुर्थी का विशेष महत्व होता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है. इस दिन भगवान गणेश की पूजा अर्चना की जाती है.जो भी व्यक्ति इस दिन सचे मन से पूजा अर्चना करता उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. इस चतुर्थी का अर्थ है संकट को हरने वाल, मान्यता है कि भगवान गणेश अपने सभी भक्तों के कष्ट को दूर करते हैं. आइए जानते हैं, कब है आषाढ़ मास की संकष्टी चतुर्थी, जानिए इस दिन के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व के बारे में

संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त
आज के पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 3 बजकर 54 मिनट से 28 जून तो 2 बजकर 16 मिनट कर रहेगा. इस बार संकष्टी चतुर्थी पर रविवार का दिन पर पड़ रहा है इसलिए इसे रविवती संकष्टी कहा जाता है, मान्यता है कि जिन लोगों की कुंडली में सूर्य कमजोर स्थिति में होता है. उनके लिए विशेष रूप से लाभदायक होता है. भगवान सूर्य की कृपा पाने के लिए हर सुबह स्नान कर अर्घ्य देना चाहिए. इससे आपकी ग्रह संबंधी समस्याएं दूर हो जाएगी.
संकष्टी चतुर्थी की पूजा कैसे करें
इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. इस दिन स्नान कर संकष्टी व्रत का संकल्प लें. इस खास दिन पर पीले रंग के कपड़े पहनना शुभ होता है. सबसे पहले पूजा के स्थल को साफ कर लें और उस पर एक लाल रंग का कपड़ा बिछाकर गणेश जी की मूर्ति या फोटो रखें. पूजा के समय में आपका मुख पूर्व और उत्तर दिशा में होना चाहिए. भगवान के आगे दीया जलाएं. इसके बाद फूल, अक्षत, रोली, सिंदूर, प्रसाद के लिए मोदक और केला रखें. इसके बाद भगवान गणेश की विधि विधान से पूजा करें और मंत्रों का जाप करें.
संकष्टी चतुर्थी महत्व
मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन गणेशजी की पूजा करने से सभी दुख दूर हो जाते हैं. इस दिन व्रत करने से आपके घर से नकारात्मकत उर्जा दूर हो जाती है. गणेश संकष्टी का व्रत सूर्योदय से शुरू होता है और शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद संपन्न होता है.


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