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- आज है संकष्टी चतुर्थी...
हिंदू धर्म में चतुर्थी तिथि का विशेष महत्व होता है। हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी व्रत किया जाता है। माघ मास के कृष्ण पक्ष के चतुर्थी तिथि व्रत को सकट चौथ भी कहते हैं। इसे तिल चतुर्थी, तिलकूट चतुर्थी या वक्रतुंड चतुर्थी के नाम से भी जानते हैं। संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान श्रीगणेश की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है।
संकष्टी चतुर्थी का शुभ मुहूर्त व चंद्रोदय टाइमिंग-
संकष्टी चतुर्थी 21 जनवरी को सुबह 8 बजकर 52 मिनट तक तृतीया तिथि रहेगी। इसके बाद चतुर्थी तिथि लग जाएगी। राहुकाल 21 जनवरी को सुबह 10 बजकर 30 मिनट से दोपहर 12 बजे तक रहेगा। इसलिए पूजन का शुभ मुहूर्त सुबह 09 बजकर 43 मिनट से सुबह 10 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। वहीं दिल्ली में चंद्रोदय का समय रात 08 बजकर 3 मिनट है। मुंबई में चंद्रदर्शन 8 बजकर 27 मिनट पर होंगे।
संकष्टी चतुर्थी का महत्व-
धार्मिक मान्यता के अनुसार, संकष्टी चतुर्थी व्रत रखने से भगवान श्रीगणेश प्रसन्न होते हैं। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से संतान को कष्टों से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा संतान की कामना करने वालों के लिए यह व्रत उत्तम माना जाता है
व्रत कथा-
किसी नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आंवां लगाया तो आंवां नहीं पका। परेशान होकर वह राजा के पास गया और बोला कि महाराज न जाने क्या कारण है कि आंवा पक ही नहीं रहा है। राजा ने राजपंडित को बुलाकर कारण पूछा। राजपंडित ने कहा, ''हर बार आंवा लगाते समय एक बच्चे की बलि देने से आंवा पक जाएगा।'' राजा का आदेश हो गया। बलि आरम्भ हुई। जिस परिवार की बारी होती, वह अपने बच्चों में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता। इस तरह कुछ दिनों बाद एक बुढि़या के लड़के की बारी आई
बुढि़या के एक ही बेटा था तथा उसके जीवन का सहारा था, पर राजाज्ञा कुछ नहीं देखती। दुखी बुढ़िया सोचने लगी, ''मेरा एक ही बेटा है, वह भी सकट के दिन मुझ से जुदा हो जाएगा।'' तभी उसको एक उपाय सूझा। उसने लड़के को सकट की सुपारी तथा दूब का बीड़ा देकर कहा, ''भगवान का नाम लेकर आंवां में बैठ जाना। सकट माता तेरी रक्षा करेंगी।''
सकट के दिन बालक आंवां में बिठा दिया गया और बुढि़या सकट माता के सामने बैठकर पूजा प्रार्थना करने लगी। पहले तो आंवा पकने में कई दिन लग जाते थे, पर इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवा पक गया। सवेरे कुम्हार ने देखा तो हैरान रह गया। आंवां पक गया था और बुढ़िया का बेटा जीवित व सुरक्षित था। सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक भी जी उठे। यह देख नगरवासियों ने माता सकट की महिमा स्वीकार कर ली। तब से आज तक सकट माता की पूजा और व्रत का विधान चला आ रहा है।