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आज प्रदोष व्रत है। इस दिन देवों के देव महादेव और माता पार्वती की पूजा उपासना करने का विधान है। इस दिन कथा श्रवण मात्र से व्यक्ति के जीवन से सभी तरह के काल, कष्ट, दुख और दरिद्रता दूर हो जाते हैं।
आज प्रदोष व्रत है। इस दिन देवों के देव महादेव और माता पार्वती की पूजा उपासना करने का विधान है। इस दिन कथा श्रवण मात्र से व्यक्ति के जीवन से सभी तरह के काल, कष्ट, दुख और दरिद्रता दूर हो जाते हैं। प्रदोष व्रत के दिन विधि-विधान पूर्वक शिव जी और माता पार्वती की पूजा आराधना करनी चाहिए। आइए, अब प्रदोष व्रत की कथा जानते हैं-
प्रदोष व्रत की कथा
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, प्राचीन समय में एक ब्राम्हणी रहती थी, जो पति की मृत्यु के बाद अपना पालन-पोषण भिक्षा मांगकर करती थी। एक दिन जब वह भिक्षा मांग कर लौट रही थी, तो उसे रास्ते में दो बालक मिले, जिन्हें वह अपने घर ले आई। इसके बाद दिन बीतते गए। जब दोनों बालक बड़े हो गए तो ब्राह्मणी दोनों बालक को लेकर ऋषि शांडिल्य के आश्रम गई। जहां ऋषि शांडिल्य ने अपने तपोबल से बालकों के बारे में पता कर कहा-हे देवी! ये दोनों बालक विदर्भ राज के राजकुमार हैं। गंदर्भ नरेश के आक्रमण से इनके पिता का राज-पाट छीन गया है।
ब्राह्मणी और राजकुमारों ने प्रदोष व्रत किया
तब ब्राह्मणी ने पूछा-हे ऋषिवर इनका राज-पाट वापस कैसे आएगा? इस बारे में कोई उपाय बताएं। उस समय ऋषि शांडिल्य ने उन्हें प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि के कहे अनुसार, ब्राह्मणी और राजकुमारों ने विधिवत प्रदोष व्रत किया। उन्हीं दिनों बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती से हुई, दोनों एक दूसरे को चाहने लगे। तब अंशुमती के पिता ने राजकुमार की सहमति से दोनों की शादी कर दी।
इसके बाद दोनों राजकुमार ने गंदर्भ सेना पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में अंशुमती के पिता ने राजुकमारों की मदद की थी। युद्ध में गंदर्भ नरेश की हार हुई। राजकुमारों को पुनः विदर्भ काराज मिल गया। तब राजकुमारों ने गरीब ब्राह्मणी को भी अपने दरबार में विशेष स्थान दिया। प्रदोष व्रत के पुण्य-प्रताप से ही राजुकमार को अपना राज पाट वापस मिला और ब्राम्हणी के दुःख और दूर हो गए।
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