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हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को हर साल फुलेरा दूज का उत्सव मनाया जाता है
हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को हर साल फुलेरा दूज का उत्सव मनाया जाता है। इस बार यह शुभ पर्व 15 मार्च यानी आज मनाया जा रहा है। होली से पहले मनाया जाने वाला फुलेरा दूज ब्रज में काफी धूमधाम से मनाया जाता है और इस दिन से होली के उत्सव की तैयारियां भी शुरू कर दी जाती हैं। भगवान कृष्ण को समर्पित इस उत्सव के दिन मथुरा के मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि यह दिन शादी-विवाह जैसे मांगलिक कार्यक्रमों के लिए बहुत शुभ है। इस दिन किसी का व्रत करने के विधान तो नहीं है लेकिन भगवान श्रीकृष्ण और उनकी लीलाओं का गान किया जाता है। आइए जानते हैं फुलेरा दूज का धार्मिक महत्व, कथा और शुभ मुहूर्त के बारे में…
फुलेरा दूज का धार्मिक महत्व
फुलेरा दूज के दिन किसी भी तरह की नकारात्मक शक्तियों और ग्रह-नक्षत्रों के अशुभ दोषों का कोई प्रभाव नहीं रहता। शास्त्रों में इस दिन को अबूझ मुहूर्त बताया गया है। अबूझ मुहूर्त का अर्थ होता है कि इस दिन आप कोई भी शुभ कार्य बिना पंचाग देखे शुरू कर सकते हैं। इस दिन विवाह, संपत्ति खरीदना या नया बिजनस करना आदि कार्य बिना किसी मुहूर्त के शुरू कर सकते हैं। इस दिन राधा-कृष्ण की पूजा का विशेष महत्व होता है और उनकी पूजा-अर्चना करने से आशीर्वाद प्राप्त होता है और गोलोक में स्थान प्राप्त होता है।
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इस तरह शुरू हुई फुलेरा दूज की परंपरा
फुलेरा दूज के दिन ब्रज की गोपियों ने राधा-कृष्ण पर फूल बरसाए थे और चारों तरफ फूलों ने ब्रज में अजीब लहर छा गई थी, जिसके कारण फुलेरा दूज का ब्रज में काफी महत्व है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन से होली खेलने की परंपरा को शुरू कर दिया था, इस वजह से ब्रज में भी फुलेरा दूज के दिन से होली की तैयारियां शुरू हो जाती हैं।
इस तरह मनाया जाता है फुलेरा दूज
फुलेरा दूज के दिन घरों में रंगों और फूलों से रंगोली मनाई जाती है और भगवान कृष्ण की पसंदीदा पकवान बनाए जाते हैं। पकवान में माखन-मिश्री, पोहा समेत कई व्यंजन बनाए जाते हैं और फिर उनको भोग लगाकर प्रशाद के रूप में बांटा जाता है। इस रस्म को पवित्र भोज या विशेष भोग के नाम से जानी जाती है। ब्रज के मंदिरों में बड़े उत्साह के साथ यह पर्व मनाया जाता है, इस दिन विशेष रूप से राधा-कृष्ण की पूजा की जाती है और मंदिरों को फूलों से सजाया जाता है।
फुलेरा दूज का शुभ मुहूर्त
फुलेरा दूज 15 मार्च 2021, दिन सोमवार
द्वितीया तिथि प्रारंभ: शाम 05 बजकर 10 मिनट से 14 मार्च
द्वितीया तिथि समाप्त: शाम 06 बजकर 50 मिनट से 15 मार्च
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फुलेरा दूज की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रज के कामों के चलते भगवान श्रीकृष्ण राधाजी से मिलने के लिए वृंदावन नहीं आ रहे थे। इसके लिए राधाजी काफी दुखी थीं क्योंकि काफी दिनों से उन्होंने कृष्णजी को नहीं देखा था, राधाजी को दुखी देखकर गोपियां भी काफी परेशानी थीं। राधाजी के उदास होने के कारण ब्रज के जंगल सूखने लगे थे और फूल भी मुरझा रहे थे। वनों की स्थिति को देखकर जब श्रीकृष्ण को पता चला कि ऐसा राधाजी के कारण हो रहा है, तब वह वृंदावन में उनसे मिलने पहुंचे। वृंदावन में कृष्णजी के आने से राधा काफी खुश हो गईं और चारों तरह हरियाली छा गई, फिर से पशु-पंक्षी आने-जाने लगे और पेड़ भी लहराने लगे।
भगवान कृष्ण ने राधाजी को छेड़ने के लिए खिल रहे फूल को तोड़ लिया और उन पर फेंक दिया। राधाजी ने भी कृष्णजी के साथ ऐसा किया। यह देखकर वहां मौजूद गोपियां और ग्वाले भी राधा-कृष्ण को देखकर ऐसा करने लगे और एक-दूसरे पर फूल बरसाने शुरू कर दिए। कहते हैं तभी से हर साल मथुरा में फुलेरा दूज के दिन ब्रज के मंदिरों में फूलों की होली खेली जाने लगी।
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