धर्म-अध्यात्म

आज है निर्जला एकादशी...जाने शुभ मुहूर्त और विशेष पूजा विधि

Subhi
21 Jun 2021 2:40 AM GMT
आज है निर्जला एकादशी...जाने शुभ मुहूर्त और विशेष पूजा विधि
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आज निर्जला एकादशी है. हिंदू पंचांग के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखते हैं

आज निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) है. हिंदू पंचांग के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखते हैं. एकादशी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है और निर्जला एकादशी के व्रत को तो सभी एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा – अर्चना की जाती है. आइए जानते हैं निर्जला एकादशी के महत्व, शुभ मुहूर्त और नियम से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों के बारे में.

शुभ मुहूर्त
20 जून को एकादशी तिथि प्रारंभ शाम 04 बजकर 21 मिनट से ये शुरू होकर 21 जून को दोपहर 01 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगा. अगर उदया तिथि की बात करें तो इस तिथि के अनुसार, निर्जला एकादशी का व्रत 21 जून को लोग रखेंगे और इस व्रत का पारण लोग 22 जून को किया जाएगा.
इस व्रत के नियम
ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करना बहुत ही कठिन है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इस व्रत को करने वाले लोग जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करना होता. इस निर्जला एकादशी का व्रत रखने से एक दिन पहले से ही चावल का त्याग कर देना चाहिए. कहा जाता है कि इस व्रत करने वाले को सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए.
इस व्रत का महत्व
शास्त्रों में ये निहित है कि, लोगों को निर्जला एकादशी का व्रत अपने जीवन में रखना ही चाहिए. इस व्रत को निरजला एकादशी तो कहते ही हैं लेकिन इसके अलावा इसे पांडव एकादशी भी कहा जाता है. इस बारे में एक कथा भी प्रचलित है. दरअसल, ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल में इस व्रत का पालन भीमसेन ने किया था जिसके कारण उन्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई थी. इसके अलावा ये भी मान्यता है कि इस व्रत को जो कोई भी करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. साथ ही उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इस व्रत पर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना पूरे विधि-विधान से की जाती है.

इस व्रत को करने से मिलता है पूरे वर्ष भर फल
एक मान्यता के अनुसार, निर्जला एकादशी का व्रत रखने से एक साथ वर्ष भर की एकादशी का फल मिलता है. वैसे भी हिंदी पंचांग के अनुसार, एकादशी एक माह में दो बार आती है और इस तरह से पूरे वर्ष भर में ये एकादशी 24 बार पड़ती है.


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