धर्म-अध्यात्म

आज है कजरी तीज, अखण्ड सौभाग्य व पुत्र प्राप्ति के लिए सुहागिनें इस शुभ मुहूर्त में करें पूजा

Renuka Sahu
25 Aug 2021 1:49 AM GMT
आज है कजरी तीज, अखण्ड सौभाग्य व पुत्र प्राप्ति के लिए सुहागिनें इस शुभ मुहूर्त में करें पूजा
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फाइल फोटो 

हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल भाद्रमास की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजरी तीज का व्रत रखा जाता है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल भाद्रमास की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजरी तीज का व्रत रखा जाता है. इस बार कजरी तीज का व्रत 25 अगस्त 2021 को रखा जाएगा. ये दिन सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है. हिंदू धर्म के अनुसार इस व्रत को सुहागिन महिलाएं अपनी पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं. इसके अलावा इस व्रत को करने से सुख समृद्धि और संतान प्राप्ति के लिए भी रखा जाता है. कजरी तीज के दिन सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं.

कजरी तीज का व्रत विशेष रूप से राजस्थान, पश्चिम उत्तर प्रदेश और हरियाणा के श्रेत्र में रखा जाता है. आइए जानते हैं इस व्रत से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों के बारे में. इस व्रत को सुहागिन महिलााएं अपने पति की लंबी उम्र और अखण्ड सौभाग्य प्राप्ति के लिए रखती हैं. कुंवारी लड़कियां भी इस व्रत को इच्छित वर प्राप्ति के लिए रखती हैं. ये व्रत बहुत मुश्किल होता है.
कजरी तीज शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रमास में कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि होने के कारण कजरी तीज कहा जाता है. ततृीय तिथि 24 अगस्त 2021 को शाम 04 बजकर 05 मिनट से 25 अगस्त 2021 को शाम 04 बजकर 18 मिनट तक रहेगा. उदय तिथि होने के कारण कजरी तीज का त्योहार 25 अगस्त को मनाया जाएगा. इस बार कजरी तीज पर धृति योग बन रहा है. इस दिन महिलाएं नीमड़ी माता की पूजा करती है.
कजरी तीज का महत्व
कजरी तीज का व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती है. इस व्रत को करने से घर में सुख- समृद्धि बनी रहती है. इस दिन पूजा – पाठ करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. इस खास दिन पर गाय की विशेष पूजा होती है. कजरी तीज के दिन पारण चंद्रोदय के बाद किया जाता है.
कजरी तीज पूजा विधि
कजरी तीज के दिन पूजा करने के बाद मिट्टी और गोबर की दीवार तालाब के किनारे बनाया जाता है. घी और गुड़ से पाल बांधा जाता है और उसके पास नीम की टहनी लगाई जाती है. इस तालाब जैसी अकृति में कच्चा दूध और जल डाला जाता है. इसके बाद दीप जलाकर थाली में नींबू , ककड़ी, केला, सेब, अक्षत आदि चीजें डालें. इस दिन नीमड़ी माता की पूजा होती है. इस पूजा में श्रृगांर का सामान अर्पित करें. इसके बाद शाम के समय में चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है. अर्घ्य देते समय चांदी की अंगूठी और गेंहू के दानों को हाथ में लेकर चंद्रमा के चारों तरफ परिक्रमा करें. इस दिन मालपुआ का भोग लगाना चाहिए.


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