धर्म-अध्यात्म

आज है गणगौर तीज, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

Subhi
4 April 2022 3:34 AM GMT
आज है गणगौर तीज, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
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हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणगौर तीज मनाई जाती हैं। इस बार गणगौर तीज का व्रत 4 अप्रैल 2022 दिन सोमवार यानि आज मनाया जाएगा।

हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणगौर तीज मनाई जाती हैं। इस बार गणगौर तीज का व्रत 4 अप्रैल 2022 दिन सोमवार यानि आज मनाया जाएगा। हिंदू धर्म में गणगौर पूजा का विशेष महत्व माना गया है। इस पर्व में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा विधि विधान से की जाती है। यहां गण का अर्थ भगवान शिव एवं गौर का अर्थ माता पार्वती से है। खासतौर पर गणगौर तीज का व्रत मध्य प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाता है। गणगौर का पर्व चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होकर चैत्र शुक्ल की तृतीया को गणगौर तीज पर व्रत पूजन के साथ समापन होता है। इस तरह यह पर्व पूरे 16 दिनों तक चलता है। यह दिन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु एवं सुखी वैवाहिक जीवन के लिए यह व्रत रखती हैं, जबकि विवाह योग्य कन्याएं मनपसंद वर या जीवनसाथी की कामना से गणगौर तीज व्रत रखती हैं। आइए जानते हैं गणगौर तीज का महत्व पूजा सामग्री, विधि और शुभ मुहूर्त।

उदयातिथि के आधार पर गणगौर तीज व्रत 04 अप्रैल को रखा जाएगा।

गणगौर तीज 2022 तिथि

तृतीया तिथि आरंभ: 03 अप्रैल, रविवार दोपहर 12:38 बजे से

तृतीया तिथि समाप्त : 04 अप्रैल, सोमवार दोपहर 01:54 बजे पर

उदयातिथि के आधार पर गणगौर तीज व्रत 04 अप्रैल को रखा जाएगा।

गणगौर तीज 2022 पूजा मुहूर्त

शुभ मुहूर्त आरंभ: 04 अप्रैल, सोमवार, दोपहर 11:59 बजे से

शुभ मुहूर्त समाप्त: 04 अप्रैल, सोमवार,दोपहर 12:49 बजे पर

गणगौर तीज पर कई शुभ योग भी बन रहे हैं।

गणगौर तीज पर बन रहे हैं शुभ योग

प्रीति योग आरंभ: 04 अप्रैल, सोमवार प्रातः 07:43 बजे से

प्रीति योग समाप्त:05 अप्रैल, मंगलवार, प्रातः 07:59 बजे तक

रवि योग आरंभ: 04 अप्रैल, सोमवार दोपहर 02:29 बजे से

रवि योग समाप्त: 05 अप्रैल, मंगलवार प्रातः 06:07 बजे पर

गणगौर तीज का महत्व

गणगौर तीज कुंवारी और विवाहित महिलाएं अपने सौभाग्य और अच्छे वर की कामना करने के लिए करती हैं। इस दिन माता पार्वती और भगवान शंकर की आराधना की जाती है। 17 दिन चलने वाले इस पर्व का समापन चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर होता है। कुंवारी, विवाहित और नवविवाहित महिलाएं इस दिन नदी, तालाब या शुद्ध स्वच्छ शीतल सरोवर पर जाकर गीत गाती हैं और गणगौर को विसर्जित करती हैं। यह व्रत विवाहित महिलाएं पति से सात जन्मों का साथ, स्नेह, सम्मान और सौभाग्य पाने के लिए करती हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता गवरजा यानि मां पार्वती होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं और आठ दिनों के बाद इसर जी यानि भगवान शिव उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं। इसलिए यह त्योहार होली की प्रतिपदा से आरंभ होता है। इस दिन से सुहागिन स्त्रियां और कुंवारी कन्याएं मिट्टी के शिव जी यानि गण एवं माता पार्वती यानि गौर बनाकर उनका प्रतिदिन पूजन करती हैं। इसके बाद चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर यानि शिव पार्वती की विदाई की जाती है। जिसे गणगौर तीज कहा जाता है।


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