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आज है धनतेरस, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि
प्रत्येक वर्ष दिवाली से एक दिन पहले धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। हिंदी पंचांग के अनुसार कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व पड़ता है। इसे धन त्रयोदशी या फिर धन्वंतरि जयंती को रुप में भी जाना जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी, कोषाध्यक्ष कुबेर और भगवान धन्वंतरि का पूजन किया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन पूजन करने से घर में धन के भंडार हमेशा भरे रहते हैं और धन-संपदा में वृद्धि होती है। धनतेरस के दिन नई चीजें खरीदने की परंपरा भी है। इस पर्व को धन-समृद्घि दायक माना गया है। तो चलिए जानते हैं कि इस बार कितनी तारीख को है धनतेरस और क्या है महत्व व पूजा विधि।
धनतेरस की तिथि व शुभ मुहूर्त-
हिंदी पंचांग के अनुसार इस साल धनतेरस का त्योहार 02 नबंवर 2021 दिन मंगलवार को मनाया जाएगा।
कार्तिक मास कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि आरंभ- 02 नबंवर 2021 दिन मंगलवार को सुबह 11 बजकर 31 मिनट से
कार्तिक मास कष्ण पक्ष त्रयोदश तिथि समाप्त- 03 नबंवर 2021 दिन बुधवार को सुबह 09 बजकर 02 मिनट से
धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त - शाम को 06 बजकर 16 मिनट से रात 08 बजकर 11 मिनट तक
पूजन की कुल अवधि - 01 घण्टा 54 मिनट्स रहेगी।
धनतेरस का महत्व-
धनतेरस वाले दिन से ही दीपोत्सव यानी दिवाली की शुरुआत हो जाती हैं। इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी, धन कोषाध्यक्ष कुबेर और भगवान धन्वंतरि की पूजा का विधान है। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक पूजन करने से घर में धन की कमी नहीं होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वंतरि इसी दिन अपने हाथों में अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसलिए इस दिन उनका पूजन किया जाता है। इस दिन बर्तन खरीदने की परंपरा है क्योंकि जब भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए तो उनके हाथों में कलश था।
धनतेरस पूजा विधि-
धनतेरस पर शाम के वक्त शुभ मुहूर्त में उत्तर की ओर कुबेर और धन्वंतरि की स्थापना करें।
इसी के साथ मां लक्ष्मी व गणेश की भी प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करनी चाहिए।
अब दीप प्रज्वलित करें और विधिवत पूजन करना आरंभ करें।
तिलक करने के बाद पुष्प, फल आदि चीजें अर्पित करें।
अब कुबेर देवता को सफेद मिष्ठान और धन्वंतरि देव को पीले मिष्ठान का भोग लगाएं।
पूजन के दौरान 'ऊं ह्रीं कुबेराय नमः' इस मंत्र का जाप करते रहें।
भगवान धन्वंतरि को प्रसन्न करने के लिए इस दिन धन्वंतरि स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।