धर्म-अध्यात्म

आज भीष्म अष्टमी है,जानें भीष्म अष्टमी में पूजा का शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि के बारे में

Kajal Dubey
8 Feb 2022 1:50 AM GMT
आज भीष्म अष्टमी है,जानें भीष्म अष्टमी में पूजा का शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि के    बारे में
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माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भीष्म अष्टमी कहते हैं

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भीष्म अष्टमी कहते हैं. इस तिथि पर व्रत करने का विशेष महत्व होता है. आज भीष्म अष्टमी है. शास्त्रों के अनुसार इस दिन भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर अपने प्राण त्यागे थे. इस दिन प्रत्येक हिंदू को भीष्म पितामह के निमित्त कुश, तिल व जल लेकर तर्पण करना चाहिए. मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से सुसंस्कारी संतान की प्राप्ति होती है. इस दिन पितामह भीष्म के निमित्त तर्पण करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. इस दिन को पितृदोष निवारण के लिए भी उत्तम माना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो लोग उत्तरायण में अपने प्राण त्यागते हैं, उनको जीवन-मृत्यु के चक्र से छुटकारा मिल जाता है, वे मोक्ष को प्राप्त करते हैं. आइए जानते हैं भीष्म अष्टमी में पूजा का शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि के बारे में.

भीष्म अष्टमी तिथि और मुहूर्त
अष्टमी तिथि आरंभ- 08 फरवरी 2022 (मंगलवार) सुबह 06 बजकर 15 मिनट से
अष्टमी तिथि समाप्त- 09 फरवरी 2022 (बुधवार) सुबह 08 बजकर 30 मिनट पर
भीष्म अष्टमी का शुभ मुहूर्त- 08 फरवरी 2022 को सुबह 11 बजकर मिनट से दोपहर 01 बजकर 42 मिनट तक
भीष्म अष्टमी का महत्व
मान्यता के अनुसार, भीष्म अष्टमी का व्रत जो व्यक्ति करता है उसके सभी पाप दूर हो जाते हैं. उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. साथ ही उन्हें पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है. इस दिन भीष्म पितामह का तर्पण जल, कुश और तिल से किया जाता है. श्रीमद्भगवद्गीता में बताया गया है कि किस तरह अर्जुन के तीरों से घायल होकर महाभारत के युद्ध में जख्मी होने के बावजूद भीष्म पितामह 18 दिनों तक मृत्यु शैय्या पर लेटे थे. इसके बाद उन्होंने माघ शुक्ल अष्टमी तिथि को चुना और मोक्ष प्राप्त किया.
भीष्म अष्टमी व्रत विधि
-भीष्म अष्टमी के दिन व्यक्ति को किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए और बिना सिले वस्त्र धारण करने चाहिए.
-इसके बाद दाहिने कंधे पर जनेऊ धारण करें.
-यदि आप जनेऊ धारण नहीं कर सकते तो दाहिने कंधे पर गमछा जरूर रखें.
-दाहिने कंधें पर गमछा रखने के बाद हाथ में तिल और जल लें और दक्षिण की ओर मुख करें.
-इसके बाद इस मंत्र का जाप करें- "वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृतिप्रवराय च. गंगापुत्राय भीष्माय, प्रदास्येहं तिलोदकम् अपुत्राय ददाम्येतत्सलिलं भीष्मवर्मणे"
-मंत्र जाप के बाद तिल और जल को अंगूठे और तर्जनी उंगली के मध्य भाग से होते हुए पात्र में छोड़ें.
-इसके बाद जनेऊ या गमछे को बाएं कंधे पर डाल लें और गंगापुत्र भीष्म को अर्घ्य दें.
-आप भीष्म पितामह का नाम लेते हुए सूर्य को जल दे सकते हैं या दक्षिण मुखी होकर भी आप किसी वट वृक्ष को जल दे सकते हैं.
-इसके बाद तर्पण वाले जल को किसी पवित्र वृक्ष या बरगद के पेड़ पर चढ़ा दें.
-अंत में हाथ जोड़कर भीष्म पितामह को प्रणाम करें और अपने पितरों को भी प्रणाम करें.


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