धर्म-अध्यात्म

आज है अपरा एकादशी, जानिए पारण समय और धार्मिक महत्व

Triveni
6 Jun 2021 2:35 AM GMT
आज है अपरा एकादशी, जानिए पारण समय और धार्मिक महत्व
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अपरा एकादशी व्रत प्रत्येक वर्ष जेष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| अपरा एकादशी व्रत प्रत्येक वर्ष जेष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। इस साल की अपरा एकादशी आज है। एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा एवं व्रत का विधान है। अपरा एकादशी श्री हरि विष्णु जी की कृपा प्राप्त करने के लिए उत्तम मानी जाती है। पुराणों में अपरा एकादशी को मोक्षदायनी कहा गया है। इस दिन श्रद्धापूर्वक व्रत रखने वाला व्यक्ति प्रेत योनी की बाधा से मुक्त हो जाता है। आइए जानते हैं मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा एवं धार्मिक महत्व के बारे में।

अपरा एकादशी का मुहूर्त एवं पारण समय
अपरा एकादशी आज 6 जून रविवार को है। एकादशी तिथि का प्रारंभ 5 जून को प्रातः 4:07 बजे हुआ है और समाप्ति 6 जून को प्रातः 6:19 बजे होगी। व्रत के पारण का समय 7 जून की सुबह 5:23 से 8:10 बजे तक है।
अपरा एकादशी पूजा विधि
अपरा एकादशी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त हो कर भगवान विष्णु की प्रतिमा को पीले रंग के आसन पर स्थापित करना चाहिए। रोली व हल्दी का भगवान को तिलक कर अक्षत, फल, फूल, दीप-धूप तथा नैवेद्य चढ़ना चाहिए। इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम व अपरा एकादशी व्रत कथा का पाठ करना उत्तम फलदायक है। दिनभर व्रत रख सायंकाल में विष्णु जी की आरती व यथाशक्ति दान पुण्य करें तथा अगले दिन मुहूर्त के अनुसार व्रत का पारण करना चाहिए।
अपरा एकादशी व्रत का महात्म
अपरा एकादशी विशेष है। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक जो भी भगवान विष्णु का पूजन और व्रत रखता है, उसे समस्त सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है एवं वो व्यक्ति प्रेत योनी की बाधा से मुक्त हो जाता है। अपरा एकादशी को शास्त्रों में मोक्षदायनी माना गया है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति द्वारा जीवन काल में की गयी गलतियों को भगवान विष्णु क्षमा कर देते हैं।
अपरा एकादशी की व्रत कथा
पद्मपुराण में वर्णित अपरा एकादशी की कथा के अनुसार, महीध्वज नाम का एक नीतिज्ञ राजा था, उसका छोटा भाई वज्रध्वज उससे ईर्ष्या करता था। एक दिन छल से उसने राजा को मार कर पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दिया। अकाल मृत्यु होने के कारण राजा महीध्वज प्रेत योनी में कई वर्षों से भटक रहे थे। एक दिन एक ऋषि ने अपने तपोबल से राजा के प्रेत योनी में भटकने का कारण जान, स्वंय अपरा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत रखा एवं उसका पुण्य राजा को दिया। राजा की आत्मा, प्रेत योनी से मुक्त हो कर भगवान विष्णु की कृपा से बैकुण्ठ धाम पहुंच गई। अपरा एकादशी के महात्म का वर्णन महाभारत में भी मिलता है।


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