धर्म-अध्यात्म

आज माघ पूर्णिमा पर बन रहा विशेष संयोग...करे स्नान और दान

Subhi
27 Feb 2021 2:07 AM GMT
आज माघ पूर्णिमा पर बन रहा विशेष संयोग...करे स्नान और दान
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हिंदू धर्म में माघ मास की पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है. आज के दिन पवित्र नदी में स्नान कर दान- पुण्य किया जाता है.

हिंदू धर्म में माघ मास की पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है. आज के दिन पवित्र नदी में स्नान कर दान- पुण्य किया जाता है. कुछ लोग इस दिन व्रत भी रखते हैं. माघ मास की पूर्णिमा को माघी पूर्णिमा भी कहते है. हर महीने शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि को पूर्णिमा तिथि होती है. इस दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं से सुशोभित होकर उदित होता है. इस बार पूर्णिमा पर शुभ योग बन रहा है.

इस बार माघ पूर्णिमा पर शनि और गुरु का संयोग बन रहा है. साथ ही सूर्य और शुक्र का संयोग भी रहेगा. माघ पूर्णिमा पर स्नान करने का शुभ मुहूर्त 5 बजकर 49 मिनट से शुरू हो चुका है. आज सूर्योदय से पहले स्नान, दान और जप करने से विशेष फल मिलता है.

पूर्णिमा का महत्व
पूर्णिमा तिथि चंद्रदेव और भगवान विष्णु को समर्पित होती है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है. दान-पुण्य और स्नान के अलावा लोग सत्यनारायण की कथा भी सुनते हैं. माना जाता है कि ऐसा करने से घर में धन धान्य की कोई कमी नहीं रहती, सौभाग्य में वृद्धि होती है और निसंतान दंपति को सुयोग्य संतान प्राप्त होती है. पूर्णिमा के दिन दान, स्नान व भगवान नारायण की पूजा करने से वे प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी संकटों से रक्षा करते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.

माघ पूर्णिमा व्रत कथा
कांतिका नगर में धनेश्वर नाम का ब्राह्मण निवास करता था. वो अपना जीवन निर्वाह दान पर करता था. ब्राह्मण और उसकी पत्नी के कोई संतान नहीं थी. एक दिन उसकी पत्नी नगर में भिक्षा मांगने गई, लेकिन सभी ने उसे बांझ कहकर भिक्षा देने से इनकार कर दिया. तब किसी ने उससे 16 दिन तक मां काली की पूजा करने को कहा, उसके कहे अनुसार ब्राह्मण दंपत्ति ने ऐसा ही किया. उनकी आराधना से प्रसन्न होकर 16 दिन बाद मां काली प्रकट हुईं और मां काली ने ब्राह्मण की पत्नी को गर्भवती होने का वरदान दिया. साथ ही कहा कि अपने सामर्थ्य के अनुसार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम दीपक जलाओ. इस तरह हर पूर्णिमा के दिन तक दीपक बढ़ाती जाना जब तक कम से कम 32 दीपक न हो जाएं.

ब्राह्मण ने अपनी पत्नी को पूजा के लिए पेड़ से आम का कच्चा फल तोड़कर दिया. उसकी पत्नी ने पूजा की और फलस्वरूप वह गर्भवती हो गई. प्रत्येक पूर्णिमा को वह मां काली के कहे अनुसार दीपक जलाती रही. मां काली की कृपा से उनके घर एक पुत्र ने जन्म लिया, जिसका नाम देवदास रखा. देवदास जब बड़ा हुआ तो उसे अपने मामा के साथ पढ़ने के लिए काशी भेजा गया. काशी में उन दोनों के साथ एक दुर्घटना घटी जिसके कारण धोखे से देवदास का विवाह हो गया. देवदास ने कहा कि वह अल्पायु है परंतु फिर भी जबरन उसका विवाह करवा दिया गया. कुछ समय बाद काल उसके प्राण लेने आया लेकिन ब्राह्मण दंपत्ति ने पूर्णिमा का व्रत रखा था इसलिए काल उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाया. तभी से कहा जाता है कि पूर्णिमा के दिन व्रत करने से सभी संकटों से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.


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