धर्म-अध्यात्म

दरिद्रता दूर करने के लिए नियमित रूप से करें श्री महालक्ष्मी अष्टक का पाठ

Bhumika Sahu
26 Jun 2022 5:05 AM GMT
दरिद्रता दूर करने के लिए नियमित रूप से करें श्री महालक्ष्मी अष्टक का पाठ
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श्री महालक्ष्मी अष्टक का पाठ

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। ज्योतिष: हर कोई अपने जीवन में सुख शांति और धन दौलत की कामना करता है इसके लिए वह कड़ी मेहनत भी करता है मगर फिर भी उसे पूरा फल प्राप्त नहीं होता है ऐसे में व्यक्ति निराश हो जाता है धन प्राप्ति के लिए देवी मां लक्ष्मी की कृपा होना जरूरी है

अगर आप पूरी निष्ठा भाव के साथ नियमित रूप से श्री महालक्ष्मी अष्टक का पाठ करते हैं और अपने काम को मन लगाकर करते हैं तो आपको गरीबी से जल्द ही छुटकारा मिल जाएगा, तो आज हम आपके लिए लेकर आए है श्री महालक्ष्मी अष्टक पाठ।
आपको बता दें कि श्री महालक्ष्मी अष्टक का पाठ करने से पहले खुद को साफ सुथरा करें इसके लिए स्नान आदि करके साफ वस्त्र धारण करें और जिस स्थान पर आप श्री महालक्ष्मी अष्टक का पाठ करेंगे उस स्थान को साफ सुथरा करें और गंगाजल का छिड़काव भी करें इसके बाद स्थान ग्रहण करके श्री गणेश का ध्यान करके महालक्ष्मी अष्टक का पाठ आरंभ करें और अंत में क्षमा यार्चना भी जरूर करें
नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते ।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्षि्म नमोस्तु ते॥1॥
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि ।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥२॥
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि ।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥३॥
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि ।
मन्त्रमूर्ते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥४॥
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि ।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥५॥
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्ति महोदरे ।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥६॥
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि ।
परमेशि जगन्माता महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥७॥
श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते ।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥८॥
। फलश्रुति ।
महालक्ष्म्यष्टकस्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः ।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ॥
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम् ।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः ॥
त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम् ।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्न वरदा शुभा ॥
महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ।
॥ इतीन्द्रकृतं महालक्ष्म्यष्टकं सम्पूर्णम् ॥


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