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धर्म-अध्यात्म
तिरुपति पहुंचने के लिए इन मार्गों को जरूर जानें ले, अच्छे से होंगे दर्शन
Deepa Sahu
21 Nov 2021 2:40 PM GMT
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तिरुपतिजी के दर्शन के लिए कौन नहीं जाना चाहता।
तिरुपतिजी के दर्शन के लिए कौन नहीं जाना चाहता। अगर आपके भी मन में धरती के इस बैकुंठ, जहां भगवान विष्णु साक्षात् विराजमान माने जाते हैं की इच्छा है। तो आप समझ लीजिए कि ये सबसे सही समय है श्रीविष्णु के दर्शनों के लिए। जी हां, वैसे तो तिरुपति धाम की यात्रा कभी भी की जा सकती है। लेकिन सर्दियों के मौसम यानी कि दिसंबर से फरवरी का समय सबसे सही समय माना जाता है। तो आइए फिर आपको बता देते हैं कि आप कैसे पहुंचें भगवान तिरुपतिजी के धाम और यहां आसपास के दर्शनील स्थल कौन-कौन से हैं?
तिरुपति पहुंचने के लिए इन मार्गों को जरूर जानें
अगर आप तिरुपति बालाजी के दर्शन लाभ लेने के लिए हवाई मार्ग से जाना चाहते हैं तो यहां से निकटम हवाई अड्डा रेनिगुंटा में स्थित है। इंडियन एयरलाइंस की हैदराबाद, दिल्ली और तिरुपति के बीच प्रतिदिन सीधी उड़ान उपलब्ध है। इसके अलावा अगर रेल मार्ग से सफर करना चाहते हैं तो यहां का निकटतम रेलवे जंक्शन तिरुपति है। यहां से बंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद के लिए हर समय ट्रेन उपलब्ध है। तिरुपति के पास के शहर रेनिगुंटा और गुडूर तक भी ट्रेन चलती है। वहीं, अगर आप सड़क मार्ग का चयन कर रहे हैं तो राज्य के विभिन्न भागों से तिरुपति और तिरुमला के लिए एपीएसआरटीसी की बसें नियमित रूप से चलती हैं। टीटीडी भी तिरुपति और तिरुमला के बीच नि:शुल्क बस सेवा उपलब्ध कराती है। यहां के लिए टैक्सी भी मिलती है।
तिरुपति के आस-पास के दर्शनीय स्थल
श्रीवराहस्वामी मंदिर : तिरुमला के उत्तर में स्थित यह प्रसिद्ध मंदिर भगवान विष्णु के अवतार वराह स्वामी को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि भगवान वेकंटेश्वर ने यहां अपना निवास स्थान बनाया था।
श्रीपद्मावती समोवर मंदिर, तिरुचनूर : यह मंदिर भगवान वेंकटेश्वर की पत्नी और मां लक्ष्मी का अवतार मानी जाने वाली श्रीपद्मावती को समर्पित है। मान्यता है कि तीर्थयात्रियों की तिरुमला की यात्रा तब तक पूर्ण नहीं होती, जब तक वे इस मंदिर के दर्शन नहीं कर लेते।
श्रीकपिलेश्वरस्वामी मंदिर : तिरुपति से करीब 3 किलोमीटर दूर तिरुमला की पवित्र पहाड़ियों के नीचे एक इकलौता शिव मंदिर है, जहां कपिला तीर्थम नाम का एक झरना भी है। इस तीर्थस्थल को अलवर तीर्थम के नाम से भी जाना जाता है।
श्रीकोदादंरमस्वामी मंदिर : यह मंदिर तिरुपति के मध्य में स्थित है। यहां सीता, राम और लक्ष्मण की पूजा होती है। इस मंदिर का निर्माण चोल राजा ने दसवीं शताब्दी में कराया था। इस मंदिर के ठीक सामने अंजनेयस्वामी का मंदिर है जो श्री कोदादंरमस्वामी मंदिर का ही उपमंदिर है। उगडी और श्री रामनवमी का पर्व यहां बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
श्रीगोविंदराजस्वामी मंदिर : यह भगवान बालाजी के बड़े भाई श्री गोविंदराजस्वामी जी को समर्पित यह मंदिर तिरुपति का मुख्य आकर्षण है।
श्रीकल्याण वैंकटेश्वरस्वामी मंदिर, श्रीनिवास मंगापुरम : तिरुपति से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस मंदिर का धार्मिक और पौराणिक महत्व की वजह से यहां काफी संख्या में भक्तगण आते हैं। मान्यता है कि भगवान वेंकटेश्वर और श्री पद्मावती शादी के बाद तिरुमला जाने से पहले यहां ठहरे थे।
पापनाशन तीर्थ : यह स्थान तिरुपतिजी से तकरीबन 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह एक वॉटर फॉल है, जहां स्नान करने का विशेष महत्व है। इसके अलावा मंदिर से 2 किलोमीटर की दूरी पर एक पर्वत है जिसे बैकुंठ तीर्थ कहते हैं, वहां से गुफा है जिसे बैकुंठ गुफा कहते हैं। उसमें से हमेशा ही शीतल जलधारा प्रवाहित होती रहती है।
सप्तगिरी : अब जब आप तिरुपति जाएं तो सप्तगिरी, जिन्हें कि भगवान विष्णु के 7 शीश माना गया है उनके दर्शन करना बिल्कुल न भूलें। इन्हीं पर्वतों में से एक पर स्थापित है भगवान तिरुपति का मंदिर। इन 7 पहाड़ियों यानी कि सप्तगिरी को सप्तरिशी भी कहा जाता है। पहला है नीलांदी। यानी कि नील देवी का पर्वत। मान्यता है कि श्रद्धालुओं द्धारा जो बाल दिए जाते हैं, उन्हें नील देवी अपनाती है। दूसरा नारायण पर्वत है जो नाराय्नाद्री कहलाता है। तीसरा भोलेनाथ के वाहन नंदी का पर्वत है। जिसे कि वृशाभाद्री कहते हैं। चौथा पर्वत भगवान विष्णु के अवतार भगवान वेंकटेश्वर जी का पर्वत है। इसे वेंकटाद्री कहते हैं। इसके बाद पांचवा पर्वत है गरुदाद्री। यह भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ का पर्वत है। छठा पर्वत है हनुमानजी का। इसका नाम है
अन्जनाद्री। सातवां और अंतिम सप्तगिरी है
सेशाद्री यानी कि सेषा पर्वत।
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